मुल्क के आज़ाद हुए सात दशक गुज़र चुके हैं लेकिन मुसलमानों की बेबसी और उनके हालात का जिम्मेदार कौन है? क्या इस बदहाली के जिम्मेदार खुद मुसलमान है या मुसलमानों की लीडरशिप है या फिर मुसलमानों के मौलवी हैं? जो हर बात पर फतवा निकल देते हैं कि ये मत करो, वो मत करो ये हराम है। मुसलमान क़ौम का क़ातिल कौन खुद उनकी अपनी ही लीडरशिप या सियासी पार्टियां?
मुसलमानों अपनी आंखें खोलों और क़ौम के नाम पर ठेकेदारी करने वालों को नकारों और खुद में अपनी नौजवान नस्लों में अपनी खुद की ताकत और अपनी सोच को पैदा करो। मुल्क व क़ौम को सियासत से लेकर तालीम तक का सुनहरा सफर तय करने का अज़्म करो। वरना तुम्हारी इसी तरह की गुमराही तुम्हारे साथ ही तुम्हारी आने वाली नस्लों को तबाह व बर्बाद कर देगी। सबसे पहले तो अपने बच्चों को तालीम याफ्ता बनाओ। उन्हें डाक्टर, इंजीनियर टीचर व आॅफिसर बनाओ। उसके बाद सरकारी मशीनरी में उनको भेजने की कोशिश करो। उन्हें आइएएस, आईपीएस बनाओ। अगर इतनी हिम्मत नहीं है या सोच नहीं है तो कम से कम पुलिस में भर्ती करो। रेलवे में भर्ती करो। आज अगर मुसलमान पिछड़ा है तो उसका ज़िम्मेदार सभी सियासी पार्टियां हैं। उसकी वजह आपकी खामोशी है।
आपने जिसे भी अपने गले लगाया बदले में उस पार्टी ने आप के गले को काटा। आपने कभी हिम्मत नहीं किया उनके सामने सच बोलने की। आज देश का मुसलमान समाज के हर मैदान में पिछड़ा हुआ है। चाहे वो शिक्षा हो चाहे नौकरी हो, चाहे राजनीत हो। आप हमेशा गुलाम और मज़दूर बनकर रहे। अब बस अब आप तय करें कि बिना हिस्सेदारी के किसी का साथ नहीं देंगे। अपने हक़ के लिए हम अपनी आवाज़ को खुद बुलंद करेंगे। ऐसे लोगो को सपोर्ट करेंगे जो बिना किसी भेदभाव के राष्ट्रहित देशहित के लिए काम करेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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