Jaunpur Live : दास्ताने कर्बला 10 : हम तुमको आजमां चुके बस ऐ हुसैन बस...

जंग के दौरान हुई आकाशवाणी इमाम ने तलवार वापस खैंच ली
यजीदी फौज टूट पड़ी, मुनादी ने आवाज दी हुसैन शहीद हो गये


जौनपुर। आशूर के दिन सभी असहाब, अंसार यहां तक की परिवार के लोग शहीद हो चुके है। तन्हा इमाम हुसैन है और उनका बीमार बेटा सैय्यदे सज्जाद। यजीदियों ने हुसैन से फिर समर्पण करने को कहा लेकिन ने हुसैन ने यजीदियों को एक बार फिर मौका दिया और कहा तुम हक पर नहीं हो अभी भी वक्त है हक पर आ जाओ हम तुम्हें माफ कर देंगे। यह और बात है कि तुमने हमारे सभी सहाबियों का कत्ल कर दिया है। हमारे परिवारवालों तक का यहां तक कि हमारे भाई बेटे, भतीजे, भांजे सब शहीद हो चुके है बावजूद इसके हम तुम्हें क्षमा प्रदान कर देंगे। लेकिन हम अधर्मी के हाथ पर धर्म को नहीं सौंपेगे। इसके बाद एक बार फिर जंग का बिगुल बज जाता है।
इमाम ने चारों तरफ रुख करके एक बार फिर आवाज लगायी है कोई जो मेरी मदद को आये जिन्नातों का लश्कर आगे बढ़ता है। जिनों के सरदार जाफर जिन इमाम की खिदमत में आते है और मदद की पेशकश करते है। इमाम ने ठुकरा दिया। आसमान से फरिश्ते भी आते है। जिबरील नाजिल होते है ऐ हुसैन अल्लाह फरमाता है जीत चाहिए अथवा शहादत। इमाम ने जिबरील से कहा मैं वादये तिफ्ली अदा कर रहा हूं। मुझे फतह नहीं लकाहे इलाही अर्थात शहादत चाहिए। इधर इमाम की आवाज पर शहीदों के लाशों से लब्बैक या हुसैन की सदा आने लगी।  हुसैन खैमे में वापस आते है और पुराने लिबास जेबेतन करते है। बहन पूछती है भइया पुराने लिबास क्यों पहन रहे है तो हुसैन ने बताया कि मेरी शहादत के बाद मेरे जिस्म से कपड़े तक उतार लिये जाएंगे इसलिए पुराने कपड़े पहन रहा हूं ताकि मुमकिन है कि कपड़े छोड़ दिये जाए। बीमार बेटे सैय्यदे सज्जाद से मुखातिब होते है। बेटा अब ये कुनबा तुम्हारे हवाले। नाना के उम्मत की जिम्मेदारी तुम्हारे पास और खैमे से आरी रूख्सत लेकर हुसैन मैदान में में आना चाहते है। सुबह से एक दस्तूर चला आ रहा था। जब किसी सहाबी या अक्रबा को जंग के लिए भेजा जाता तो इमाम खुद आकर उसे सवार करते। हालात ऐसे बदल चुके है कि इमाम को सवार करने वाला कोई नहीं। बहन जैनब इमाम के पास आती है और कहती है भइया ये बहन तुम्हें सवार करेगी। इमाम घोड़े पर सवार होते है अब इमाम खुद मकतल की जानिब रवाना हो रहे है। अहले हरम को बीमार बेटे के हवाले किया और घोड़े पर सवार हुए अल्लामा मीर अनीस लिखते है हुसैन जब की चले बादे दोपहर रन को, कोई न था कि जो थांबे रकाबे तौसन को, सकीना झाड़ रही थी अबा के दामन को, हुसैन चुपके खड़े थे झुकाये गर्दन को, न आसरा था कोई शाहे कर्बलाई को, शकत बहन ने किया था सवार भाई को और मैदान में पहुंचकर जंग शुरू करते है तीन दिन के भूख और प्यास के बावजूद इमाम ने ऐसी जंग की कि यजीदी फौज के पसीने छूट गये। मैमना मैशरे से टकराया तो मैशरा मैमने से। हर तरफ से अल अमान की सदाएं बलंद होने लगी। इमाम जंग करते जा रहे थे और रजज पढ़ते जा रहे थे। तूने मेरे जवान बेटे को मारा, मेरे भाई को मारा, मेरे सहाबियों को मारा लेकिन हुसैन कमजोर नहीं हुआ है। इमाम अभी जंग कर ही रहे थे कि इसी असना में आकाश से एक आवाज गूंजती है। या अय्योहतुन्नफ्सुव मुतमइनतो एला राजियतुम्मरजीया अर्थात ऐ नफ्स-मुत-मइन मैं तुझसे राजी हुआ तु भी मुझसे राजी हो जा। मीर अनीस लिखते है लाशे पे लाशे उठा चुके बस ऐ हुसैन बस जख्मों पे जख्म खा चुके बस ऐ हुसैन बस, वादे सभी निभा चुके बस ऐ हुसैन बस, हम तुमको आजमा चुके बस ऐ हुसैन बस, सर अपना देदो खंजरे बेदाद के लिए कुछ इम्तेहान छोड़ दो सज्जाद के लिए..। इतना सुनना था कि इमाम ने चलती हुई तलवार को म्यान में वापस लिया। तलवार को म्यान में रखना ही था कि भागी हुई फौज सिमट आयी। तीरों की बारिश, नैजों की बौछार, तारीखों में मिलता है कि जिसके पास कोई असलहा नहीं था वो फौजी र्इंट और पत्थर के टूकड़े फेंक रहा था। इसी दौरान एक तीर इमाम की पेशानी पर लगता है और घोड़े से डगमगा जाते है। तारीखों में मिलता है कि हुसैन के जिस्म में इतने तीर लग चुके थे कि जब घोड़े से जमीन पर आये तो उनका जिस्म तीरों पर मुअल्लक रहा। अब शिम्र इमाम को नहर करने के लिए आगे बढ़ता है। जहां तक नहर और जीबह का सवाल है तो ये दोनों अलग अलग कार्य है। जीबह गर्दन के सामने के हिस्से से किया जाता है और नहर गर्दन के पीछे के हिस्से से तलवार चलाकर की जाती है। लेकिन कर्बला में यजीदी इमाम हुसैन को इस तरीके से नहर करते हैं कि सबसे पहले शिम्र अपनी तलवार की धार को तोड़ता है, इमाम के सीने पर पांव रखता है और पलटकर पीछे के गर्दन के भाग पर टूटी हुई तलवार को रगड़ता है। इमाम का सर शरीर से जुदा करने के बाद नैजे में चूभोकर उसे उठाया जाता है। असमान काला पड़ जाता है। सियाह आंधी चलती है। खून की बारिश होती है। मुनादि की निंदा उठती है। अलाकोतेलल हुसैनो बे कर्बला अला जोबेहल हुसैनों बेकर्बला ऐ लोगों नवासे मोहम्मद शहीद कर दिया गया।
और नया पुराने

Contact us for News & Advertisement

Profile Picture

Ms. Kshama Singh

Founder / Editor

Mo. 9324074534