Jaunpur Live : दास्ताने कर्बला 8 : इमाम ने साथियों से कहा लो चिराग बुझा देता हूं सन्नाटे में चले जाइए

यजीदी फौज में बेचैनी थी हुसैनी भूख और प्यास में भी संतुष्ट थे
जौनपुर। नवी मोहर्रम का दिन बीत गया और रात आ गयी। अब इमाम आलीमकाम को जिस बात की सबसे अधिक चिंता है वो ये की अपने साथियों को मौत के मुंह से कैसे बचाया जाय? रात के सन्नाटे में अपने सभी साथियों को जमा किया। कुछ इस प्रकार मुखातिब हुए 'आप लोगों से बेहतर साथी किसी को भी नसीब नहीं हुए लेकिन यजीद सिर्फ मुझे कत्ल करना चाहता इसलिए हम आप सभी लोगों को आजाद करते है रात के सन्नाटे में अपनी जान बचाकर निकल जाओ" ये सुनकर सभी साथी खड़े हो गए और बड़ी ही बहादुरी से कहा आकड़ा उस जिंदगी पर लालत है जो आपके बाद बची रहे। इधर पानी न होने की वजह से खैमों से हाय प्यास की सदा बलंद होने लगी और इमाम आलीमकाम की बहन जनाबे जैनब के पास लगभग 20 बच्चे बच्चियां एकत्र होकर पानी मांग रहे थे और शहजादी बच्चों को संतोष दिला रही थी। इसी प्रकार रात गुजर गयी और भोर हो गयी। अब इमाम अपने साथियों के साथ इबादत कर रहे है। हर कोई जानता है कि ये  उनके जीवन की आखिरी सुबह है। इसी दौरान अचानक इमाम की आंख लग गयी और उन्होंने स्वप्न में देखा की बहुत से कुत्ते हमला कर रहे है। इन्हीं कुत्तों में एक अबलक मबरूस कुत्ता है जो अधिक शक्ति कर रहा है।




अल्लामा दमेरी लिखते है कि इमाम हुसैन को सिंह ने शहीद किया जो मबरूस था और सुबह हो गयी तभी आसमान से एक आवाज गुंजी। ऐ अल्लाह के बहादुर सिपाहियों तैयार हो जाओ ये समय इम्तेहान और मौत का आ रहा है और दश मोहर्रम की सुबह हो गयी जिसे सुबह-ए-आशूरा कहा जाता है। जिसके बारे में शायद की यह पंक्ति 'तोलूवे सुबह महशर थी तोलूवे सुबह-ए-आशूरा" अर्थात यह सुबह प्रलयकारी सुबह है। इधर यजीदी सेना ने अपने सिपाहियों को टोलियों में बांट दिया। इधर इमाम नमाज के लिए खड़े हुए उनके अठ्ठारह वर्षीय नौजवान बेटे अली अकबर ने अजान कही। इमाम ने जमात से नमाज अदा करायी। अभी लोग मुसल्ले पर ही थे की एक साथ दुश्मनों की अस्सी हजार की फौज हमने के लिए अमादा हो गये। इमाम मुसल्ले से उठ खड़े हुए और अपने 71 साथियों को कुछ इस प्रकार बाटा मैंमना में बीस, मैंसरा में बीस सिपाही तैनात किए गए। शेष को मज्ज भाग में खड़ा किया गया। मैमना के सरदार जुहैर कैन को बनाया गया जबकि मैसरा का हबीब इब्ने मजाहिर को और अलमदारे लश्कर जनाबे अब्बास को (जलालु ओयून पृ. 201) इधर इमाम की बातों का असर यजीदी सेना के एक प्रमुख कमाण्डर हुर पर पड़ा। उन्होंने इब्ने सअद के पास जाकर आखिरी बार उसका इरादा भापा और अपने घोड़े पर सवार होकर इमाम की खिदमत में हाजिर हो गये। हूर के साथ उनका बेटा भी था। कुल मिलाकर एक बात तो स्पष्ट हो ही गयी कि लाखों की सेना होने के बावजूद यजीद और उसके कमाण्डरों में बेचैनी छायी हुई थी जबकि मात्र 72 लोगों के साथ इमाम आलीमकाम पूरे इतमिनान में थे और होते भी क्यों न सच्चाई कभी भी विचरित नहीं होती। यजीद को यह भय सता रहा था कि कहीं उसकी दौलत की लालच में खड़ी की गयी सेना भाग न जाए तो हुसैन इसलिए संतुष्ट थे कि उनके थोड़े ही सही लेकिन सभी सिपाही जान छिड़कने वाले थे और शायद यही वजह थी कि जब इमाम हुसैन ने नवीं मोहर्रम की रात में सभी साथियों को सम्बोधित करके चले जाने के लिए कहा और जलते हुए चिराग यह कहकर बुझा दिये कि शायद साथियों को उनका चेहरा देखकर दया न आ जाए। बावजूद इसके जब उन्होंने कहा कि लो मैं अंधेरा कर देता हूं और सन्नाटे में निकल जाओ तुम्हारे स्वर्ग की जिम्मेदारी मेरी है मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं रही तो सभी साथियों ने अपने अपने गर्दन पर अपनी तलवार रखी और कहा कि आप हुक्म करे तो मैं अपनी गर्दने यहीं उतार दूं लेकिन हम सब आपको छोड़कर जा नहीं सकते। साथियों ने यह भी का कि अगर 70 बार कत्ल करके फिर जिंदा किया जाएगा तो फिर भी हम आप पर जान देने के लिए तैयार रहेंगे।
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