जौनपुर। पूर्व सांसद धनंजय सिंह दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय “भविष्य का भारत संघ का दृष्टिकोण” विषयक संगोष्ठी में शामिल हुए। इस मौके पर मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि इस तीन दिवसीय संगोष्ठी में प्रतिभाग कर संघ की अवधारणा, संघ के उद्देश्य, संघ की कार्यसंस्कृति और संघ का विभिन्न संवेदनशील विषयों पर क्या दृष्टिकोण इन सब बातों को निकट से देखा और समझने का प्रयत्न किया।
उन्होंने कहा कि संघ की चरित्र निर्माण से व्यक्ति निर्माण और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की अवधारणा से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ। किसी भी समाज में जब चरित्रवान और राष्ट्र-प्रेमी नागरिकों की बहुलता होगी तो वे स्वाभाविक है अपने समीप रहने वाले लोगों को भी प्रभावित करेंगें और धीरे-धीरे राष्ट्र के सभी नागरिक अनुशासित और राष्ट्रोत्थान को समर्पित हो जायेंगे और भारत को परमवैभव सम्पन्न विश्व का नेतृत्व करने वाला राष्ट्र बनाने का यही मार्ग है। संघ की कार्यपद्धति का दूसरा पहलू जो मुझे बहुत उचित और प्रिय लगा वह है कि वहां किसी भी स्वयंसेवक से उसकी जाति, पंथ, मजहब, भाषा, भेष, क्षेत्र और राजनीतिक विचारधारा के सम्बन्ध में न तो पूछा जाता है और न ही उसके आधार पर कोई भेदभाव किया जाता है।
श्री सिंह ने कहा कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, आभिजात्य वर्ग से लेकर वंचितों, वनवासियों तक, संस्कृत से लेकर ऊर्दू व अंग्रेजी भाषियों तक काम करने वाला इतना बड़ा स्वयंसेवी संगठन दुनिया में दूसरा मिलना दुर्लभ है।
उन्होंने संघ का महिमा मंडन करते हुए देश के विभिन्न राजनीतिक और गैर राजनीतिक लोगों से आग्रह किया कि आप चाहे जिस विचारधारा से हों, आप चाहे जिस प्रकार की कार्यसंस्कृति से हों पर संघ के विषय में अपनी राय, अपने विचार सुनिश्चित करने से पूर्व एक बार उनके उद्देश्य, उनकी कार्यसंस्कृति, चरित्र निर्माण के उनके प्रकल्प, राष्ट्रोत्थान के प्रति उनका समर्पण और राष्ट्र के लिए उनके योगदान को निकट से अवश्य देखें, समझें तदुपरांत अपना मानस सुनिश्चित करें।
उन्होंने कहा कि संघ की चरित्र निर्माण से व्यक्ति निर्माण और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की अवधारणा से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ। किसी भी समाज में जब चरित्रवान और राष्ट्र-प्रेमी नागरिकों की बहुलता होगी तो वे स्वाभाविक है अपने समीप रहने वाले लोगों को भी प्रभावित करेंगें और धीरे-धीरे राष्ट्र के सभी नागरिक अनुशासित और राष्ट्रोत्थान को समर्पित हो जायेंगे और भारत को परमवैभव सम्पन्न विश्व का नेतृत्व करने वाला राष्ट्र बनाने का यही मार्ग है। संघ की कार्यपद्धति का दूसरा पहलू जो मुझे बहुत उचित और प्रिय लगा वह है कि वहां किसी भी स्वयंसेवक से उसकी जाति, पंथ, मजहब, भाषा, भेष, क्षेत्र और राजनीतिक विचारधारा के सम्बन्ध में न तो पूछा जाता है और न ही उसके आधार पर कोई भेदभाव किया जाता है।
श्री सिंह ने कहा कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, आभिजात्य वर्ग से लेकर वंचितों, वनवासियों तक, संस्कृत से लेकर ऊर्दू व अंग्रेजी भाषियों तक काम करने वाला इतना बड़ा स्वयंसेवी संगठन दुनिया में दूसरा मिलना दुर्लभ है।
उन्होंने संघ का महिमा मंडन करते हुए देश के विभिन्न राजनीतिक और गैर राजनीतिक लोगों से आग्रह किया कि आप चाहे जिस विचारधारा से हों, आप चाहे जिस प्रकार की कार्यसंस्कृति से हों पर संघ के विषय में अपनी राय, अपने विचार सुनिश्चित करने से पूर्व एक बार उनके उद्देश्य, उनकी कार्यसंस्कृति, चरित्र निर्माण के उनके प्रकल्प, राष्ट्रोत्थान के प्रति उनका समर्पण और राष्ट्र के लिए उनके योगदान को निकट से अवश्य देखें, समझें तदुपरांत अपना मानस सुनिश्चित करें।
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