जौनपुर लाइव। आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर, कोई सिंहासन चढ़ चला कोई बंधा जाय जंजीर। जन्म के साथ ही मृत्यु जुड़ी होती है लेकिन महत्ता कर्म की होती है। जीव जन्म मृत्यु के चक्कर में घूमता रहता है। इस चक्र से छूटने के लिए अंतिम अवसर है मानव-शरीर। मानव को ही वह क्षमता प्राप्त है कि वह स्वबोध ब्राहृ बोध कर सकता है। ब्राहृज्ञान अर्थात आत्मा व परमात्मा के साक्षात्कार से ही मुक्ति मिलती है। जीते जी मोक्ष प्राप्त कर लेना ही मानव जीवन का एक मात्र लक्ष्य है। यह तन तेरा ब्राहृ नहीं है। ब्राहृ तो भीतर करें निवास, शरीर नश्वर है किन्तु आत्मा अजर व अमर है। यह उद्गार ग्राम दुर्गापर (सिकरारा) व पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित जासोपुर ब्राान्च में ब्राम्हलीन संत मुरलीधर यादव जी पूर्व प्रमुख व ज्ञान प्रचारक के श्रद्धांजलि समारोह में उपस्थित विशाल संत समूह को सम्बोधित करते हुए इलाहाबाद से आये विद्वान संत सुखदेव सिंह (ज्ञान प्रचारक) ने व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि सत्संग के रुप में श्रद्धा के फूल उस जीवन को समर्पित किये जा रहे है जो गुरुमत और परोपकार में बीता। महात्मा जी ने सुन्दर देन दी और सबके ह्मदय में स्थान बनाया। उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक ढाचे में रहकर सुंदर ढंग से सभी जिम्मेदारियों को धीरज और सूझ-बूझ के साथ निभाया।
उन्होंने कहा कि जीवन की महत्ता इसी में निहित है कि कैसा जीवन जिया गया है। शरीर का इस्तेमाल किस तरह किया गया। शरीर तो आंखों से ओझल हो जाता है लेकिन जो देन दी जाती है वही याद रहती है। उन्होंने आगे कहा कि शारीरिक मजबूरियों के बावजूद मिशन की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। अपने उत्साह को कभी कम नहीं होने दिया। अपने शरीर की परवाह किये बिना प्यार एवं अपने पन की महसूसियत हर किसी को करायी दुख-सुख में शामिल होना उनके व्यवहारिक जीवन का अंग बन गया था। परोपकार के लिए वे हर समय तत्पर रहते थे। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता ज्वाला प्रसाद, श्यामलाल साहू (संयोजक), राम बचन यादव, आल्हा जी (मुखी), विमला, शिवराम, राधेश्याम द्विवेदी, राजेश प्रजापति (क्षेत्रिय संचालक जी), डॉ. विक्रमादित्य, वशिष्ठनाथ पाण्डेय, खिलाड़ी, संतलाल यादव इत्यादि लोग उपस्थित रहे। संचालन धर्मेन्द्र यादव ने किया।
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