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मीरगंज (जौनपुर) : क्षेत्र का जरौना स्टेशन गुजरे जमाने की याद दिला रहा है। वजह आजादी के 70 वर्ष बाद भी स्टेशन में रात्रि की व्यवस्था लैंप के प्रकाश के सहारे ही रहती है जिसके चलते प्लेटफार्म पर अंधेरा छाया रहता है। जनप्रतिनिधियों द्वारा किए गए उपेक्षा के कारण जनता इसे मुद्दा मानकर चल रही है।
सायंकालीन ट्रेन के आवागमन के समय स्टेशन पर अंधेरे का सन्नाटा छाया रहता है जबकि स्टेशन मास्टर लालटेन की मदद से टिकट का वितरण करते रहते हैं। स्टेशन मास्टर ने बताया कि हमारी तो यह नियति बन गई हैे किंतु विद्युतीकरण न होने के चलते यात्रियों को ट्रेन में चढ़ते, उतरते व इंतजार करते हुए काफी असुविधा उत्पन्न होती है। चोर, उचक्के समेत शोहदाओं का भय बना रहता है।
विकास की सभी परिभाषाएं जरौना रेलवे स्टेशन पर बेमानी साबित होती हैं। देश के आजाद होने के बाद हर स्थल पर विकास हुआ है किंतु जरौना रेलवे स्टेशन का पतन दर पतन हुआ है। विजय शंकर उपाध्याय बताते हैं कि पहले यहां पर प्याऊ की व्यवस्था थी। यात्रियों को पानी पिलाने हेतु कर्मचारी की बाकायदा नियुक्ति थी, किंतु अब न तो कर्मचारी रह गए हैं और न ही यहां पर पानी पीने हेतु एक अदद हैंड पंप मौजूद है।
नरेंद्र नाथ पांडेय बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में यह महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन था। यहां पर सामान की लोडिंग अनलोडिंग होती थी जिसके लिए मुख्य मार्ग के अतिरिक्त एक अन्य लाइन भी बिछी रहती थी। गाड़ियों की क्रासिंग भी यहां संभव था किंतु अब उक्त अतिरिक्त मार्ग को उखाड़ दिया गया है एवं प्लेटफार्म समय के साथ-साथ ध्वसांवशेष के परिवर्तित हो गया है।
युवा नेता संतोष शुक्ल ने कहते हैं कि हर इलेक्शन में जरौना क्षेत्र का प्रमुख मुद्दा रहता है। यहां से क्षेत्र के दो दर्जन ग्रामसभा से अधिक लोगों सहित दूर दराज के लोग भी यात्रा करते हैं, किंतु उनकी सुविधा के लिए न तो कोई प्रशासनिक अमला ही यहां मौजूद रहता है न ही उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त है। जनप्रतिनिधियों की घोर उपेक्षा का दंश झेल रहा यह जरौना रेलवे स्टेशन हम सभी का सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा। जब सार्वजनिक स्थल उपेक्षित रहेंगे तो अन्य स्थलों के विकास के बारे में सोच बेमानी होगा।
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