#JaunpurLive : भादौ माह की चतुर्थी पर महिलाओं ने रखा निराहार व्रत

बहुला चतुर्थी, गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता हैं यह व्रत
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जौनपुर। जिले में सोमवार को भादौ माह की चतुर्थी पर पड़ने वाला बहुला चतुर्थी जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है मनाया गया। इस चतुर्थी को धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। विद्वानों की मानें तो इस चतुर्थी व्रत में गणेश भगवान के साथ-साथ बहुला नामक धर्म परायण गाय की भी पूजा की जाती है। इस व्रत को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है।
इस व्रत के पीछे एक कथा प्रचलित हैं कि नंद बाबा के गौशाला में ढेर सारी गाएं थीं। इन्हीं गायों में कामधेनु की वंशज बहुला नाम की धर्म परायण गाय भी थी। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने परायण गाय की परीक्षा लेने के बारे में सोची। बहुला एक दिन चरते हुए अपने झुंड से बिछड़ गई। इस दौरान श्रीकृष्ण ने सिंह बनकर बहुला को घेर लिया और उस पर आक्रमण करने का प्रयास किया। बहुला ने अपनी जान को संकट में देख शेर से निवेदन किया कि आज उसे ना मारे क्योंकि वह अपने छोटे से बछड़े से आखिरी बार मिलना चाहती है। उसका बछड़ा भूखा होगा और उसे आखिरी बार दूध पिलाकर वह कल खुद ही उसके पास चली आएगी। शेर ने बहुला की बात मान ली।
बहुला शेर को दिये गये वचन के मुताबिक वह खुद शेर के पास चली आई। बहुला की धर्म परायणता को देखकर श्रीकृष्ण बहुत खुश हुए और बहुला से कहा कि तुम धर्म की परीक्षा में सफल हुई और उन्होंने बहुला का वरदान दिया कि कलियुग में तुम्हारी धर्म परायणता की वजह से भादौ माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूजा होगी। इस पूजा के कारण महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होगी।
सोमवार को जिले में इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं ने पूरे दिन निराहार रहकर शाम के वक्त मिट्टी के गाय और शेर बनाकर पूजा अर्चना की। पूजा में कई तरह के पकवान भी बनाये गये जिन्हें बहुला को अर्पित किया जाता है। पूजा में चढ़ाए गये प्रसाद गाय और बछड़े को खिलाया भी गया। व्रती महिलाओं ने बहुला की कथा का पाठ भी किया। बहुला की पूजा के साथ-साथ इस दिन भगवान गणेश की भी पूजा की गयी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सुख समृद्धि का योग बनता है।
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