#TeamJaunpurLive
रतन लाल आर्य
बख्शा, जौनपुर। स्थानीय थाना परिसर में स्थित सैय्यद मलिक जदा का उर्स इस वर्ष भी गुरु वार को पूरे अकीदत के साथ मनाया गया। परंपरा के अनुसार थानाध्यक्ष शशिचन्द्र चौधरी ने सर्व प्रथम चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगी। देर रात तक मजार पर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा चादरपोशी व दर्शन का तांता लगा रहा।
1881 में स्थापित हुई बाबा की मजार आज भी सभी धर्मों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। बताते हैं कि बाबा सैय्यद मलिक जदा पाँच भाइयों में सबसे बड़े थे। जिनमें से दो सगे भाइयों की मजार थाना परिसर में ही अगल-बगल मौजूद है। तीसरे भाई की मजार वहीं से सटे हुए गांव लखनीपुर की सार्इं बस्ती में है। जिन्हें लोग मल्लू बाबा के नाम से पूजते है। चौथे एवं पांचवे भाई की मजार क्रमश: बेलापार तथा थोड़ी दूर स्थित उटरु खुर्द गाँव के लालबाग में मौजूद है।
थानाध्यक्ष की ताजपोशी के बाद बख्शा, लखनीपुर, बेलापार, भकड़ी, रन्नो सहित अन्य गांवों के सैकड़ों लोगों ने बाबा की मजार पर चादर चढ़ा मन्नतें मांगी। रात भर मुरादे मांगने वालों का तांता लगा रहा। थाना परिसर पूरी तरह दुकानों से पटा रहा, मेले में पहुँचे लोगों ने खरीददारी कर लुफ्त मनाया। इस दौरान देर रात्रि कौव्वाली का आयोजन किया गया।
मान्यता हैं कि अंग्रेजों के शासनकाल में जब बख्शा थाने का निर्माण शुरु हुआ तो दिन में जितनी दीवारें बनाई जाती थी रात्रि में स्वत: ध्वस्त हो जाया करती थी। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा। उसी दौरान एक दिन तत्कालीन थानाध्यक्ष ने रात्रि में स्वप्न देखा कि थाने के उत्तरी कोने में बाबा की मजार है। फिर पहले सभी कार्य रोककर बाबा की मजार पक्की कराई गई, तब निर्माण कार्य आगे बढ़ सका। मजार के दक्षिण मालखाना व दफ्तर आज भी विद्यमान है। थाना परिसर में आने वाले हर पुलिस अधिकारी पहले बाबा का दशर््ान करते है। इससे लोगों के साथ पुलिसकर्मियों की गहरी आस्था जुड़ी है। आज भी पुलिस छोटे-मोटे झगड़े बाबा की मजार पर कसम खिलाकर निपटा देते है। देर रात्रि तक परंपरानुसार थाना परिसर में आयोजित जोड़ तोड़ की कौव्वाली का लोगों ने आनंद उठाया।
रतन लाल आर्य
बख्शा, जौनपुर। स्थानीय थाना परिसर में स्थित सैय्यद मलिक जदा का उर्स इस वर्ष भी गुरु वार को पूरे अकीदत के साथ मनाया गया। परंपरा के अनुसार थानाध्यक्ष शशिचन्द्र चौधरी ने सर्व प्रथम चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगी। देर रात तक मजार पर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा चादरपोशी व दर्शन का तांता लगा रहा।
1881 में स्थापित हुई बाबा की मजार आज भी सभी धर्मों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। बताते हैं कि बाबा सैय्यद मलिक जदा पाँच भाइयों में सबसे बड़े थे। जिनमें से दो सगे भाइयों की मजार थाना परिसर में ही अगल-बगल मौजूद है। तीसरे भाई की मजार वहीं से सटे हुए गांव लखनीपुर की सार्इं बस्ती में है। जिन्हें लोग मल्लू बाबा के नाम से पूजते है। चौथे एवं पांचवे भाई की मजार क्रमश: बेलापार तथा थोड़ी दूर स्थित उटरु खुर्द गाँव के लालबाग में मौजूद है।
थानाध्यक्ष की ताजपोशी के बाद बख्शा, लखनीपुर, बेलापार, भकड़ी, रन्नो सहित अन्य गांवों के सैकड़ों लोगों ने बाबा की मजार पर चादर चढ़ा मन्नतें मांगी। रात भर मुरादे मांगने वालों का तांता लगा रहा। थाना परिसर पूरी तरह दुकानों से पटा रहा, मेले में पहुँचे लोगों ने खरीददारी कर लुफ्त मनाया। इस दौरान देर रात्रि कौव्वाली का आयोजन किया गया।
मान्यता हैं कि अंग्रेजों के शासनकाल में जब बख्शा थाने का निर्माण शुरु हुआ तो दिन में जितनी दीवारें बनाई जाती थी रात्रि में स्वत: ध्वस्त हो जाया करती थी। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा। उसी दौरान एक दिन तत्कालीन थानाध्यक्ष ने रात्रि में स्वप्न देखा कि थाने के उत्तरी कोने में बाबा की मजार है। फिर पहले सभी कार्य रोककर बाबा की मजार पक्की कराई गई, तब निर्माण कार्य आगे बढ़ सका। मजार के दक्षिण मालखाना व दफ्तर आज भी विद्यमान है। थाना परिसर में आने वाले हर पुलिस अधिकारी पहले बाबा का दशर््ान करते है। इससे लोगों के साथ पुलिसकर्मियों की गहरी आस्था जुड़ी है। आज भी पुलिस छोटे-मोटे झगड़े बाबा की मजार पर कसम खिलाकर निपटा देते है। देर रात्रि तक परंपरानुसार थाना परिसर में आयोजित जोड़ तोड़ की कौव्वाली का लोगों ने आनंद उठाया।
0 Comments