"कार्टूनिस्ट गणेश चन्द्र डे को आर्टिस्ट रेसीडेंसी" | #NayaSaberaNetwork

  • कोरोना काल मे अस्थाना आर्ट फ़ोरम एक और पहल
  • समाज के विभिन्न वर्गों को कला और कलाकारों से जोड़ने की मुहिम
  • इस मुहिम से आम लोगों को भी जुड़ने की अपील
कोरोना काल मे जहाँ हर व्यक्ति इस महामारी का शिकार बना हुआ है सबसे बड़ी  जो संकट की स्थिति है वह आर्थिक रूप से। और इस संकट की घड़ी में सबसे ज्यादा कला से जुड़े स्वतंत्र कलाकार वर्ग परेशान है। जिनके लिए एक मात्र जीवन जीने का साधन ही उनकी कला है। वैसे भी कला के लिए लोग सबसे अंत मे ही सोचते हैं। जब हर चीज से परिपूर्ण हो जाते हैं। बहरहाल कला जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है चाहे कोई भी विधा हो। 
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आज का ऐसा समय जो लोगों को एक साथ एक स्थान पर इकट्ठा होना भी सम्भव नहीं ऐसे में कला की कोई गतिविधि हो ही नहीं सकती। जैसे प्रदर्शनी, वर्कशॉप,डेमोंस्ट्रेशन, बातचीत आदि। बहरहाल आएदिन ऑनलाइन बहुत सी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है लेकिन जो इस माध्यम के जानकार है उनके लिए ही यह भी सम्भव है। बहुत से ऐसे कलाकार हैं जिन्हें इस माध्यम की जानकारी ही नहीं उनके लिए यह परेशानी का कारण है। 
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ऐसी ही संकट की घड़ी में पिछले 4 महीने से अस्थाना आर्ट फोरम जो अपने ऑनलाइन क्रिएटिव वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर मौका दिया और निरंतर दे रहा है। जिसमे वर्कशॉप,स्टूडिओं विजिट,कलाकार से मिलिए,कलाकार स्मृति श्रृंखला,पेंटिंग कैम्प और आर्टिस्ट रेसिडेंसी आदि। जिसके माध्यम से इस कोरोना काल मे अपने अपने स्टूडिओं मे बैठे कलाकारों को मदद पहुचा रहे हैं साथ ही कलाकारों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। यह एक मुहिम की तरह कार्य किया जा रहा है। जिसमे अब तक 10 कलाकारों के वर्कशॉप,7 कलाकारों के आर्टिस्ट कैम्प, 4 कलाकारों के स्टूडिओं आर्टिस्ट प्रेजेंटेशन और एक रेसिडेंसी कार्यक्रम हुए। जो ऑनलाइन माध्यम से अस्थाना आर्ट फ़ोरम के मंच पर हो रहा है।
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कार्टिस्ट एवं क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि अपने अगले श्रृंखला में आर्टिस्ट रेसिडेंसी कार्यक्रम किया जा रहा है जिस माध्यम से जरूरत मंद कलाकारों को मदद किया जा सके साथ ही उनके कला को भी प्रोत्साहना मिल सके। इस श्रृंखला में पहली रेसिडेंसी वरिष्ठ कार्टूनिस्ट गणेश चन्द्र डे (उम्र.66 वर्ष.) को दिया गया है। जिन्होंने अपने इस कला के जरिये बहुत काम किया है। और आज भी उम्र के ऐसे पड़ाव में भी कार्य कर रहे हैं। जिनके जीविका का एक मात्र साधन ही यह है। कोरोना काल मे इन्हें काफी समस्या हुई है। जिसको देखते हुए इन्हें इस कार्यक्रम के माध्यम से मदद करना है। हमारे इन सभी मुहिम में हम सबके बीच से ही लोगों से अपना विशेष योगदान दिया और दे रहे हैं। अस्थाना आर्ट फ़ोरम इस मुहिम के माध्यम से समाज के लोगों को कला से जोड़ने का भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 
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आपसे भी अनुरोध है कि जो भी हमारे इस मुहिम से जुड़कर कलाकारों को सहयोग करना चाहते हैं। वे अवश्य जुड़ें। ताकि किसी ख़ास वर्क तक ही नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग तक कला को पहुचाया जा सके।
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कलाकार के लिए 'सम्मान' से अधिक जरूरी है 'काम' और 'पैसा'-  गणेश डे ( स्केच कार्टूनिस्ट )
कलाकार के बारे में - 
गणेश डे (66 वर्ष) जो एक अच्छे स्केच आर्टिस्ट और कार्टूनिस्ट हैं। आज उम्र के इस पड़ाव में भी निरंतर काम कर रहे हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी इन्होंने कभी हार नहीं मानी। कभी निराश भी नहीं हुए। एक लंबे समय से संघर्ष और विभिन्न पड़ाव से गुजरते रहे और आज भी यह संघर्ष जारी है।
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यामिनी रॉय के स्थान बाँकुरा के रहने वाले गणेश डे अपनी मंजिल की तलाश में विभिन्न स्थानो से होते हुए लखनऊ आये।पत्नी के साथ आज भी किराए के रूम में रहते हैं। तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपने मन पसंद कार्य करते रहे और आज भी कर रहे हैं।इनके हाथ से निकले हुए एक एक रेखाएं समाज की दशा और दिशा दोनों को चुनौती देती है।चित्रों के माध्यम से समाज के दशाओं को उकेरते और जागरूकता पैदा करते हैं।
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समाज में कला और कलाकारों के प्रति जो भाव होने चाहिए वो नहीं होने से निराश हैं। उनका मानना है कि आज के समय मे जो डिजिटल कार्य हो रहे हैं कहीं न कहीं कला पर गहरा असर पड़ा है. हम जैसे कलाकार जो इन संसाधनों से वंचित होकर अपना जीवन भी गुजारना मुश्किल हो गया है।
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गणेश डे को 2 साल समता लहर साप्ताहिक समाचार पत्र में 1996 से 1998 तक काम करने का मौका मिला। गणेश डे को लोग 'दादा' कहते है। दादा की जिंदगी उन कलाकारों की सी है जिन्हें कभी कोई सरकारी मदद नही मिली। किसी कला संस्थान ने उनकी मदद के लिए कदम नही उठाया। दादा आज भी कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ काम कर कुछ संसाधन जुटायते है। आज भी समसामयिक घटनाओ पर अपने कार्टून के लिए अपनी अभिव्यक्ति का प्रदर्शन करते है। लड़कियों की समाज मे हालत पर उनके कार्टून देखिये। 
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दादा जैसे कलाकार समाज और सरकार दोनो के लिए धरोहर है। पर दिखावटी चमक में दादा और उनकी कला की कद्र कंही खो सी गई है। यह किसी भी देश और समाज के लिए अच्छे संकेत नही है। दादा आज भी नई पीढ़ी और बच्चो को मुफ्त कार्टून कला सीखने को तैयार है। जिससे यह कला कभी खत्म ना हो। सरकार ना सही अगर समाज ही दादा जैसे कलाकारों की मदद करे तो ऐसी लुप्त होती कलाओं को संरक्षित किया जा सकता है।

- भूपेंद्र कुमार अस्थाना

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