Adsense

अपील दाखिल करने में देरी - जिम्मेदार अफसरों पर भारी जुर्माना - 4 सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण निधि में जमा करें - सुप्रीम कोर्ट | #NayaSaberaNetwork

अपील दाखिल करने में देरी - जिम्मेदार अफसरों पर भारी जुर्माना - 4 सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण निधि में जमा करें - सुप्रीम कोर्ट | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
समय सीमा कानून सरकार व अफसरों पर भी लागू यही सरकार व न्यायपालिका की खूबसूरती - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत में कानूनी प्रक्रिया की समय सीमा के लिए परिसीमन अधिनियम 1963 बना हुआ है। जिसके अंतर्गत कानूनी प्रक्रिया में जो समय सीमा निर्धारित होती है उसके बारे में जानकारी दी गई है विशेष बात यह है कि यह कानून अभी जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश सहित पूरे भारत वर्ष में लागू है और हर नागरिक सहित केंद्र, राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों और बड़े से बड़े ऑफिसररों तक पर कानून लागू होता है, या किसी केस के तहत अगर शासन को अपील करना है तो संबंधित अफसरों पर भी यह कानून लागू होगा और निर्धारित समय सीमा में ही संबंधित ऑफिसरों को अपील करना होगा, या उचित आधारभूत कारण को दर्शाते हुए लेट माफी की प्रक्रिया अंतर्गत कंदोनेशन आफ डिले आवेदन करना होगा, जो माननीय संबंधित कोर्ट का डिस्क्रीशनरी पावर होता है कि आधारभूत कारण को देखते हुए लेट माफी बहाल की जाए या खारिज की जाए।.... ऐसा ही एक मामला शुक्रवार दिनांक 22 जनवरी 2021 को माननीय सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति संजय किशन कौल माननीय न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी तथा माननीय न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय के सम्मुख स्पेशल लीव पिटिशन सिविल क्रमांक 25743/2020 जो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा रिट पिटिशन 2966/1997 जो 12 अप्रैल 2019 द्वारा उदय हुई थी। उत्तर प्रदेश राज्य बनाम सभा नारयन के रूप में उदय हुई थी जिसमें माननीय बेंच ने अपने 3 पृष्ठों के आदेश में ऑफिसरों द्वारा 502 दिन के बाद अपील लगाया और माननीय बेंच इस कंडोनेशन आफ डिले आवेदन से असहमत हो, याचिका खारिज की बेंच ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश और कर्नाटक राज्य पर सौ और हज़ार दिनों की देरी के बाद शीर्ष अदालत के पास जाने में सुस्ती और अक्षमता के लिए 25,000 रुपये का भारी जुर्माना लगाया। बेंच द्वारा दो अलग-अलग आदेशों की सुनवाई करते हुए ये जुर्माना लगाया गया, जिसमें राज्यों द्वारा एसएलपी दाखिल करने में हुई देरी को माफ कर दोनों राज्यों द्वारा विशेष अनुमति याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार करने का अनुरोध किया गया था। बेंच ने कहा कि एसएलपी देरी के बिना किसी भी ठोस या प्रशंसनीय आधार के बिना दायर की गई थी। यूपी राज्य द्वारा 502 दिनों की देरी के बाद एसएलपी दायर दायर की गई थी जबकि कर्नाटक राज्य के मामले में ये देरी लगभग दोगुनी थी यानी 1288 दिन। बेंच ने कहा,हमने बार-बार राज्य सरकारों और सार्वजनिक प्राधिकारियों को ऐसा दृष्टिकोण अपनाने के लिए हतोत्साहित किया है कि वे सर्वोच्च न्यायालय में जब चाहे आ सकते हैं, क़ानून द्वारा निर्धारित सीमा की अवधि की अनदेखी करके, जैसे कि सीमा अवधि क़ानून उन पर लागू नहीं होता है।यूपी राज्य द्वारा दायर एसएलपी पर विचार करते हुए, न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि,सीमा कानून एक अच्छे मामले को आने से रोकता है। ऐसा नहीं है कि आप सौ या हजार दिनों के बाद आ सकते हैं।इसके लिए, यूपी राज्य के लिए पेश वकील ने जवाब दिया कि यह न्याय के मखौल के समान होगा। हालांकि, जस्टिस कौल ने कड़ा विरोध दिखाते हुए जवाब दिया, यह न्याय का प्रश्न है जो यहां प्रश्न चिन्ह है। चीफ पोस्ट मास्टर जनरल के कार्यालय और अन्य बनाम लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड और अन्य (2012) 3 SCC 563 में इस न्यायालय के फैसले पर भरोसा दिखाया गया जिसमें न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि सरकारी विभागों का यह विशेष दायित्व है कि वे अपने कर्तव्यों का निर्वाह प्रतिबद्धता के साथ करें। देरी की पुष्टि एक अपवाद है और इसका उपयोग सरकारी विभागों के लिए एक प्रत्याशित लाभ के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। कानून सभी को एक ही प्रकाश के तहत आश्रय देता है और यह कुछ लोगों के लाभ के लिए नहीं घूमना चाहिए।इसे देखते हुए, पीठ ने यह भी कहा कि, इस तरह के मामलों को हमने एक औपचारिक मामलों के रूप में वर्गीकृत किया है जो इस अदालत के समक्ष दायर किए गए और यह केवल औपचारिकता को पूरा करने और उन अधिकारियों की खाल को बचाने के लिए किया गया जो मुकदमे का बचाव करने में लापरवाही बरत रहे हैं! अदालत ने आदेश दिया, हमने इस तरह के अभ्यास और प्रक्रिया की भर्त्सना की है और हम फिर से ऐसा कर रहे हैं। हम इस तरह के प्रमाण पत्र देने से इनकार करते हैं और यदि सरकार / सार्वजनिक प्राधिकरणों को नुकसान होता है, तो यह समय है जब संबंधित अधिकारी जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, परिणाम भुगतें। विडंबना है कि हमारे द्वारा जोर देते हुए बार-बार कहने के बाद भी अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है और अगर अदालत इसे आगे बढ़ाती है, तो कुछ हल्की चेतावनी दी जाती है। पीठ ने इसलिए न्यायिक समय बर्बाद करने के लिए दोनों राज्यों पर 25, 000 रुपये का जुर्माना लगाया और ये राशि 4 सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण निधि में जमा करने का आदेश दिया। विलंब का कारण बनने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से ये राशि वसूल करने का निर्देश दिया गया। आदेश में कहा गया,विलंब की अवधि और सामान्य तरीके से, जिसमें आवेदन को शब्दबद्ध किया गया है, को देखते हुए हम न्यायिक समय की बर्बादी के लिए याचिकाकर्ता पर 25,000/- रुपये का जुर्माना लगाने को उपयुक्त मानते हैं, जिसे चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण निधि में जमा किया जाना है और विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली गई राशि और उक्त राशि के वसूली प्रमाण पत्र भी इस कोर्ट में समय-सीमा के भीतर दर्ज किए जाएं।दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेशों की एक प्रति भेजने के निर्देश भी इस बिंदु पर दिए गए कि इस आदेश का पालन न करने पर मुख्य सचिवों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की जाएगी।दरअसल जस्टिस कौल की अध्यक्षता वाली पीठ राज्य सरकारों द्वारा अपील दाखिल करने में देरी को लेकर कुछ समय से इसी तरह के आदेश पारित कर रही है।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

*Ad : समाजवादी पार्टी जौनपुर के जिलाध्यक्ष लाल बहादुर यादव की तरफ से नव वर्ष 2021, मकर संक्रान्ति एवं गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई*
Ad


*Ad : पत्रकार आरिफ अंसारी की तरफ से जनपदवासियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं*
Ad


*Ad : प्राथमिक शिक्षक संघ जौनपुर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष लाल साहब यादव की तरफ से नव वर्ष 2021, मकर संक्रान्ति एवं गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई*
Ad



from Naya Sabera | नया सबेरा - No.1 Hindi News Portal Of Jaunpur (U.P.) https://ift.tt/2MtHPEG

Post a Comment

0 Comments