नया सबेरा नेटवर्क
जन्मदिन पर विशेष
मुंबई:चिंतामणि द्वारकानाथ देशमुख अर्थात सी.डी.देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के नाते में एक चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु परिवार में प्रतिष्ठित वकील द्वारिकानाथ गणेश देशमुख के यहां 14 जनवरी 1896 को हुआ।इनकी माता का नाम भागीरथी बाई था ,जो एक धार्मिक महिला थी।इनका बचपन रायगढ़ जिले के रोहा में बीता।1912 में मुंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और संस्कृत में पहली बार छात्रवृत्ति प्राप्त की।इसके बाद उन्होंने 1917 में यीशु कालेज ,कैंब्रिज, इंग्लैंड से वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान और भू विज्ञान के साथ स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, जहाँ उन्हें वनस्पति विज्ञान में फ्रैंक स्मार्ट पुरस्कार प्राप्त हुआ।तत्पश्चात , 1918 में वे भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में अव्वल रहे। उनका विवाह एक अंग्रेज महिला से हुआ था,जिससे उन्हें एक बेटी थी,लेकिन 1946 में दाम्पत्य जीवन में मतभेद के चलते उनकी अंग्रेज पत्नी इंग्लैंड चली गई । फिर 1952 में 57 वर्ष की उम्र में उन्होंने 43 वर्ष की एक नि:संतान विधवा ,स्वतंत्रता सेनानी, काँग्रेस पार्टी और लोकसभा सदस्य एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता दुर्गाबाई देशमुख से विवाह किया। वे भारतीय रिजर्व बैंक के पहले भारतीय गवर्नर थे ,जिन्हें 1943 में ब्रिटिश राज द्वारा नियुक्त किया गया। उनकी योग्यता के आधार पर ब्रिटिश राज ने उन्हें सर की उपाधि दी थी। इसके पश्चात् वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में भारत के तीसरे वित्त मंत्री बने। शायद, यही वजह थी कि प्रतिभाशाली सी.डी.देशमुख की आचार्य अत्रे ने 'महाराष्ट्र की कंठमणि' बताकर प्रशंसा की थी। 14 जनवरी को डॉ. सी.डी. देशमुख की जयंती मनाई जाती है। जब मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साजिश रची जा रही थी, उस समय मुंबई उनके कोलाबा निर्वाचन क्षेत्र से अलग हो गई होती।निर्वाचन क्षेत्र में होने वाली असुविधा में सहभाग नहीं लेना चाहिए और नवनिर्माण में एकभाषिक राज्य का निर्माण न हो, ऐसा कहते हुए उन्होंने केंद्रीय वित्तमंत्री पद से त्यागपत्र देकर संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई की नैतिकता बढ़ा दी। महाराष्ट्र ने पहले कभी इस तरह के असाधारण बलिदान का अनुभव नहीं किया था।गौरतलब हो कि उन्होंने आईसीएस परीक्षा में टॉप किया। फलस्वरूप अमरावती में सहायक आयुक्त के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते हुए, उन्होंने नागपुर सचिवालय में सचिव, रायपुर में भूमि पुनर्निर्माण अधिकारी, मध्य प्रांत में राजस्व सचिव और वित्त सचिव के पद संभाले। भूमि सुधार अधिकारी के रूप में उनके ईमानदार कार्य ने विदर्भ के नेताओं के लिए नागपुर समझौते पर हस्ताक्षर करना आसान बना दिया। दूसरी गोलमेज परिषद सितंबर 1931 में लंदन में आयोजित की गई थी। उस समय, सी .डी. देशमुख ने भारत के प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। वे रिजर्व बैंक के प्रथम भारतीय गवर्नर रहे। रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने बैंक अनुसंधान और सांख्यिकी विभाग, कोष और बैंक संचालन विभाग, केंद्रीय सांख्यिकीय संस्थान और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संस्थान की स्थापना की। कृषि वित्त विकास का प्रारंभ किया और दीर्घकालिक औद्योगिक ऋण के लिए औद्योगिक वित्त निगम की स्थापना की। नियमित रूप से मुद्रा और वित्त भंडार को समझने के लिए मासिक रिपोर्टिंग की पद्धति की शुरूवात की।1950 में, उन्होंने एक योजना बोर्ड स्थापित करने की पहल की। इस अवधि के दौरान, पहली पंचवर्षीय योजना के नियोजन उद्देश्य तय किए गए थे और इसके लिए आवश्यक धनराशि तय की गई थी।इन सभी उपलब्धियों के कारण, भारत ने उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त करने पर जोर दिया। पंजाब सरकार ने उन्हें कृतज्ञता के भेंट स्वरूप राज्यसभा की सीट दी। महाराष्ट्र ने हालांकि उन्हें राज्यसभा में भेजने में टाल -मटोल किया।जबकि सी .डी. देशमुख नेहरू के दाहिने हाथ थे। नेहरू ने उनके साथ योजना बोर्ड और कैबिनेट में सहयोगियों के साथ-साथ बजट में विकास के लिए अधिकतम धन रखने के लिए स्थापना लागत को कम करने के बारे में चर्चा की थी। अपना पहला बजट पेश करते समय मुद्रास्फीति को उत्तेजित नहीं किया जाएगा, ग्रामीण आत्मनिर्भरता, खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता, कपास, गांजा उत्पादन और रक्षा खर्च पर ध्यान केंद्रित करना इत्यादि उद्देश्य तय किए थे।उन्होंने भारतीय जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण करके और तम्बाकू पर पहली कर योजना शुरू करके सरकार को लाखों रुपये का सरकारी लाभ कराया। ऐसे मंत्रियों को युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत माना जाता है; चूँकि उन्होंने किसी भी पार्टी की सदस्यता को स्वीकार नहीं किया, इसलिए उन्हें हर बार उपेक्षित किया गया। अपनी आत्मकथा, द कोर्स ऑफ माई लाइफ को सम्मिलित करते हुए, वह लिखते हैं, "सेवानिवृत्ति में, हम अधिकार की स्थिति से, जनता से, घर के वंचितों और धन के विचारों से दूर चले गए हैं।" भारतीय जीवन बीमा निगम का गठन, दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल की स्थापना उनके रचनात्मक कार्यों का फल है। सरकार इन संस्थानों को उनका नाम दे सकती है और उन्हें सी.डी . देशमुख स्मारकों में बदल सकती है। मात्र ईमानदारी और दृढ़ता जैसे गुणों को उनके जीवन से लिया जाए, तो भी देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है।
-चंद्रवीर बंशीधर यादव(शिक्षाविद्)
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