प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला | #NayaSaberaNetwork

प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
कृषि व कृषि संबंधित क्षेत्रों के लिए कार्यपालिका व न्यायपालिका में सम्मान - एड किशन भावनानी
गोंदिया। वर्तमान समय में कृषकों द्वारा 48 दिनों से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए, एमएसपी के लिए आंदोलन चालू है और 10 दौर की बातचीत हो चुकी है और अब 19 जनवरी 2021 को 11वें दौर की बातचीत होगी। कृषि क्षेत्र के लिए वह उनसे जुड़े संबंधित क्षेत्रों के लिए सभी नागरिकों की सहानुभूति हमेशा से रही है,और यह गतिरोध भी सुलझ ही जाएगा ऐसी आशा है अगर हम पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो कार्यपालिका व न्यायपालिका का रुख कृषि क्षेत्र व उनसे जुड़े क्षेत्रों के लिए कुछ अनुकूल ही रहा है और हो भी क्यों न क्योंकि वह हमारे अन्नदाता हैं.. इसी क्षेत्र से जुड़ा एक विषय कि प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी सोसायटी के रूप में पंजीकृत सहकारी समितियां आयकर अधिनियम की धारा 80 पी के तहत कटौती की हकदार है? यदि वे कृषि से गैर संबंधित सदस्यों को ऋण दे रही है.. मंगलवार दिनांक 12 जनवरी 2021 को माननीय सुप्रीम कोर्ट की एक तीन सदस्यीय बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन माननीय न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा व माननीय न्यायमूर्ति के एम जोशी के सम्मुख सिविल अपील क्रमांक 7343-7350/2019 एक कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड व अन्य बनाम कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स कालीकट व अन्य के रूप में आया,और माननीय बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने 67 पृष्ठों और 48 पॉइंटों के आदेश में कहा कि, बेंच ने माना है कि, प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी के रूप में पंजीकृत सहकारी समितियां आयकर अधिनियम की धारा 80 पी (2) (a) (i) के तहत कटौती की हकदार हैं, तब भी,जब वे कृषि से संबंधित ना होने वाले अपने सदस्यों को ऋण दे रही हों। आदेश कॉपी के अनुसार, बेंच ने केरल उच्च न्यायालय (पूर्ण पीठ) के फैसले को रद्द किया, जिसमें कहा गया था कि ऐसी समिति धारा 80 पी के तहत कटौती की हकदार नहीं हैं,जब गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए सदस्यों को ऋण दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केरल उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले को पूरी तरह से गलत है। निर्णय में जस्टिस नरीमन द्वारा कहा गया, एक बार जब यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रश्न में सहकारी समिति अपने सदस्यों को ऋण सुविधा प्रदान कर रही है, तो यह तथ्य कि यह गैर-सदस्यों को ऋण की सुविधा प्रदान कर रही है, कटौती से लाभ उठाने के सवाल पर समिति को असंतुष्ट नहीं करता है।पीठ ने यह भी कहा कि गैर-सदस्यों के लिए प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी द्वारा ऋण देना गैरकानूनी नहीं है और इसका एकमात्र प्रभाव यह है कि इस तरह के ऋणों के कारण होने वाले मुनाफे को धारा 80 पी के तहत घटाया नहीं जा सकता है। बेंच के फैसले में कहा गया, किसी गतिविधि में कटौती में पात्रता और राशि के फलस्वरूप लाभ और फायदे के बीच अंतर एक वास्तविक है। चूंकि गैर-सदस्यों को दी गई क्रेडिट सुविधाओं से लाभ और फायदे को क्रेडिट की सुविधा प्रदान करने की गतिविधि के लिए सदस्यों को जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता है और इस तरह की राशि में कटौती नहीं की जा सकती है। आयकर अधिनियम की धारा धारा 80 पी धारा 80 पी सहकारी समितियों की आय के संबंध में कटौती से संबंधित है। प्रावधान इस प्रकार कहता है,जहां,एकनिर्धारती सहकारी समिति होने के मामले में, सकल कुल आय में उप-धारा (2) में उल्लिखित कोई भी आय शामिल है, इस धारा के प्रावधानों के अनुसार, निर्धारिती की कुल आय की गणना करने में उप-धारा (2) में निर्दिष्ट रकम कटौती की जाएगी। उप-धारा (2) में कहा गया है कि उप-धारा (1) में निर्दिष्ट रकम निम्नलिखित होगी, अर्थात् --( i) बैंकिंग के व्यवसाय पर ले जाने या अपने सदस्यों को ऋण की सुविधा प्रदान करना; इस तरह की गतिविधियों में से किसी एक या अधिक के लिए व्यवसाय के मुनाफे और लाभ की पूरी राशि। 80 पी की उप-धारा (4) प्रदान करती है कि इस खंड के प्रावधान प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी या प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के अलावा किसी भी सहकारी बैंक के संबंध में लागू नहीं होंगे। माननीय बेंच ने केरल हाई कोर्ट द्वारा इस मामले में उठाए गए मुद्दों को एक-एक कर उनकी व्याख्या कर समाधान किया और आयकर अधिनियम की धारा 80(पी)उप धारा 4 का विस्तृत वर्णन भी किया।धारा 80पी (1 ) (सी) यह भी स्पष्ट करती है कि धारा 80पी आमतौर पर सहकारी गतिविधि से संबंधित है और इसलिए,सामान्य तौर पर सहकारी समिति 1912 अधिनियम, या राज्य अधिनियम, और के तहत पंजीकृत है जो ऐसी गतिविधियों में संलग्न है, जिन्हें अवशिष्ट गतिविधियों के रूप में कहा जा सकता है जो कि उप-धाराओं (क) और (ख) के तहत उन गतिविधियों के अतिरिक्त या स्वतंत्र रूप से कवर नहीं की गई हैं, फिर ऐसी गतिविधि के लिए लाभ और फायदे भी कटौती के लिए उत्तरदायी हैं , लेकिन ये उप-खंड (ग) में निर्दिष्ट सीमा के अधीन है। उप-खण्ड (ग) की पहुंच अत्यंत व्यापक है, और इसमें किसी भी गतिविधि में लगी सहकारी समितियां शामिल होंगी, जो उप-खंड (क) और (ख) में उल्लिखित गतिविधियों से पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, जो उप-खंड (ग) (ii) में पाई जाने वाली 50,000/ - रुपये की सीमा के अधीन हैं। यह धारा 80 पी के तहत किसी भी लाभ प्राप्त करने के लिए, एक सहकारी सोसायटी के एक विशेष प्रकार के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर, उन उद्देश्यों को पूरा करना जारी रखना चाहिए, यदि ऐसे उद्देश्यों को केवल आंशिक रूप से किया जाता है, और सोसायटी किसी अन्य वैध प्रकार की गतिविधि करती है, तो ऐसी सहकारी समिति केवल उप-खंड (ग) के तहत 50,000 /- रुपये की अधिकतम कटौती का हकदार होगी।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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