नया सबेरा नेटवर्क
पिछला साल बीत गया है टेंशन बड़ी भारी थी,
चारों तरफ दिखा प्रतिबंध कोरोना की बीमारी थी।
रोजगारों से बेरोजगार हो गया ऐसी बड़ी कहानी थी,
चारों तरफ कि छुट्टी देखी खामोशी कुछ न्यारी थी।
छींक खास पर सही नही थी ऐसी क्या लाचारी थी,
जीवन कैसे जिया जाए यही तो विस्मय भारी थी।
लाशों की जब ढेर लगी तो मानवता चित्कार रही,
अपनों से दूरी देखी थी सपने और विचार रही।।
दूर पड़ोसी रहा देखता भेज दिया कोई घर पर,
रहे हांफते दौड़े चलते कटे ट्रेन के लौ पथ पर।
मंदिर,मस्जिद,गिरजे,गुरुद्वारे ये देखे अपने घर पर,
बंद हुए कालेज दफ्तर सब रमें रहे अपने छत पर।
सरकारें लाशों पर आये दिन करती रही तमाशा,
जूझ रहे थे जो जीवन से सांसों में आई निराशा।
पेट की आग बुझाने में दिखती रही हताशा,
पैसों के लाले पड़ गये मिला न सहयोग जरा सा।
हुई परीक्षा जैसे तैसे पास हुए सब लोग,
कलुआ बैठ बैठ के रोता नहीं किया वह योग।
पास फेल के किस्से कितने कौन किया उपभोग,
चांद सितारे पूछ रहे हैं इस गुणा-गणित का रोग।।
पढ़े-लिखे सब लोग बजाएं 5 बजे की ताली,
मोदी देश बचाने आए लोग बजाएं थाली।
मोमबत्ती, लाइट, बुझ जाए दीपक रहे ना खाली,
लगा देश में ऐसा झटका सबने खुशियां पा ली।।
मानव की मानव से दूरी मास्क पहन कर निकले,
जीवन में संघर्ष दिखा था सजग रहें न फिसलें।
कुछ तो लोग बचाने आए मानवता से पिघले,
दरिया दिल भी रखे थे वे संस्कार के निकले।।
स्टेªन भी दहला देगा खामोशी यह कहती है,
जनता सोच रही जीवन में दूरी कैसे रखती है।
कोर्ट, कचहरी, कालेज में फिर ताले पड़ जाएं,
मोबाइल से पूछ रहे कैसे नया साल मनाएं।
देवी प्रसाद शर्मा ‘प्रभात’
अहिरौला, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)।
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