नया सबेरा नेटवर्क
जम्मू: आज कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के कश्मीर (Kashmiri) से पलायन (Migration) के 31 साल हो गए हैं। पलायन करने वाले लोगों का कहना है कि आज भी उन्हें वहां की याद आती है और वह दिल से वहां वापस लौटना चाहते हैं। वह एक ऐसे दिन का ख्वाब देखते हैं, जब पंडित कश्मीर में वापस से लौट सके।
65 वर्षीय प्यारे लाल रैना की ख्वाहिश वापस कश्मीर (Kashmir) में लौटने की है, ये वह जगह है जहां उन्होंने जन्म लिया था, अपनी जिंदगी के कुछ बेहतर साल गुजारे थे। रैना का परिवार उन्हीं 4,000 से अधिक परिवारों में शामिल है, जिन्हें सन 1989 में घाटी में हुई हिंसा के बाद जम्मू से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जगती की ओर पलायन करना पड़ा था, जहां कश्मीरी पंडितों की बस्ती थी।
मुश्किल हो गया था गुजर-बसर करना
जम्मू में रैना के परिवार जैसे तमाम परिवारों के लिए गुजर-बसर करना काफी मुश्किल हो गया था। आठ साल पहले जगती में अच्छे से बसने से पहले इन्हें कई मशक्कतें करनी पड़ी, कई जगह किराए के मकानों में रहना पड़ा। जगती में उन्हें रहने के लिए दो कमरे मिले, जहां उन्हें आराम से रहने का एक मौका मिला, लेकिन कश्मीरी पंडितों की इस कॉलोनी को लोगों द्वारा उपेक्षा की नजरों से देखा जाता था। मकान टूटे-फूटे थे, पाइपों से पानी रिसने की वजह से घरों की दीवारें हमेशा नम रहा करती थीं।
रैना कहते हैं, "जगती में कश्मीरी पंडितों के कुछ घरों की स्थिति तो बहुत ही खराब थी क्योंकि यहां पानी के रिसने की एक समस्या थी। हमें साफ पानी नहीं मिलता था। इन्हें ठीक करने में हमारी कोई मदद भी नहीं की गई थी।" घाटी में उग्रवादी हिंसाओं के बाद सन 1990 के दशक की शुरूआत में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने यहां से पलायन किया था। इनमें से कुछ तो मजबूरन जम्मू में पंडितों के लिए बनाए गए शिविरों में रहने लगे थे, जहां लोगों की काफी भीड़ थी।
पढ़ाई के बाद भी हैं बेरोजगार
हालांकि रैना को सिर्फ रहने की जगह की ही चिंता नहीं सता रही थी। अपनी पत्नी के बीमार पड़ने के बाद उन्होंने तीन साल पहले अपना काम भी रोक दिया। उनकी दोनों बेटियां अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी कर ली हैं, लेकिन बेरोजगार हैं। उन्होंने आगे कहा, "हम अब थक चुके हैं। सरकार हमारे लिए कुछ भी नहीं कर रही है। मैंने सारी उम्मीदें गंवा दी है। मेरी एक बेटी ने एमबीए की पढ़ाई की है और दूसरी बेटी ने एमसीए किया है, लेकिन दोनों के पास काम नहीं है।"
रैना का कहना है कि वह एक ऐसे दिन का ख्वाब देखते हैं, जब पंडित कश्मीर में वापस से लौट सके, लेकिन इसके लिए सरकार को गंभीर होना पड़ेगा और उनकी वापसी के लिए कदम उठाने होंगे। वह आगे कहते हैं, "हम जब से जम्मू से वापस आए हैं, तब से लेकर अब तक हालात कुछ खास नहीं बदले हैं, कोई विकास नहीं हुआ है। हम तीस साल से अपनी वापसी की बात सुन रहे हैं। हम लौटने को पूरी तरह से तैयार भी हैं, लेकिन सरकार इसे लेकर कुछ भी नहीं कर रही है।"
सरकार उम्मीदों पर विफल रही
रैना के घर से कुछ ही दूरी पर पिंटूजी का घर है, जो जगती में रहने वाले एक अन्य कश्मीरी पंडित हैं। उनका कहना है कि घाटी से पलायन के बाद से सरकार उनकी उम्मीदों को पूरा करने में विफल रही है और अब समुदाय के सदस्यों को उनके लौटने की योजना पर काम करना चाहिए।
वह कहते हैं, "सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर गंभीर नहीं है। पंडितों की वापसी के लिए एक ठोस नीति बनाए जाने की जरूरत है और इस पर कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों के विचारों को भी शामिल किया जाना आवश्यक है।" कश्मीर के बाहर बसे कश्मीरी पंडितों को अब बस इसी बात की उम्मीद है कि उनकी समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो और उन्हें अपनी घर वापसी का मौका मिले।
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