नया सबेरा नेटवर्क
भारतीय पर्यावरण की रक्षा के लिए वायु, जल, भूमि, ध्वनि और पर्यावरण संरक्षण अधिनियमों का पालन करना हर नागरिक का कर्तव्य - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत में अभी कुछ दिन पूर्व ही हमने देखा झारखंड में किस तरह प्रलय ने तबाही मचाई जो 3 वर्षों पूर्व भी इससे भयानक तबाही हुई थी। इसके अलावा भी हम प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पर्यावरण विपत्ति का मंजर देखते और सुनते आए हैं। जो तबाही मचा कर ही शांत होता है। अतः भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए न केवल सामने आकर सहयोग करें, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उपायों पर भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर सुरक्षात्मक कदम उठाएं। वैसे तो कार्यपालिका व न्यायपालिका द्वारा भी पर्यावरण की रक्षा के लिए तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं। हमारे देश में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अनेक अधिनियम बने हुए हैं जिनमें पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981, जल (प्रदूषण नियंत्रण एवं नियमन) अधिनियम 1974, 1977 ध्वनि (प्रदूषण अधिनियम और नियंत्रण) कानून 2000, भूमि (प्रदूषण संरक्षण और नियंत्रण) कानून इत्यादि अनेक कानून बने हैं और भारत सरकार द्वारा पर्यावरण पर सुरक्षात्मक नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना 19अक्टूबर 2010 को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 के तहत पर्यावरण, वनों के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए किया गया था तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना भी की गई है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा करना है और उल्लंघन करने वालों पर कार्यवाही करना है, जो पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जज माननीय न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में सुचारू रूप से पर्यावरण की सुरक्षात्मक कार्यप्रणाली से संचालित कररहे हैं। एनजीटी की स्थापना के साथ भारत एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा (और पहला विकासशील) देश बन गया। इससे पहले केवल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी निकाय की स्थापना की गई थी। एनजीटी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों का तेज़ी से निपटारा करना है, जिससे देश की अदालतों में लगे मुकदमों के बोझ को कुछ कम किया जा सके। एनजीटी का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।... पर्यावरण से संबंधित ही एक मामला गुरुवार दिनांक 11 फरवरी 2021 को संबंधित हरित न्यायाधिकरण की माननीय तीन सदस्यों की बेंच के सम्मुख, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल(चेयरपर्सन) माननीय न्यायमूर्ति शिवकुमार सिंह तथा माननीय डॉ नागिन नंदा (एक्सपर्ट मेंबर) की बेंच के सम्मुख ओरिजिनल आवेदन क्रमांक 262/2020 जो पहले ओ ए क्रमांक 37/ 2019 से उत्पन्न हुआ था, याचिकाकर्ता बनाम राजस्थान राज्य के रूप में आया, जिसमें राजस्थान के एक जिले में 225 अवैध ईट भट्टों से संबंधित मामला था जिसमें माननीय बेंच ने अपने 4 पृष्ठों और 5 पॉइंटों के अपने आदेश में कहा,राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को 225 ईंटों के भट्टों के खिलफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।यह सूचित करने पर कि जिले में 200 ईंट से अधिक भट्टों का कार्य वायु और जल अधिनियमों के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वैध सहमति प्राप्त किए बिना हो रहा है, माननीय बेंच ने आदेश दिया, जिन लोगों के पास सहमति नहीं है, उनके लिए तत्काल समापन किया जा सकता है, विशेष रूप से तब जब कारण बताओ सूचना पहले ही दे दी गई हो। जिन लगों के पास सहमति है, उनके लिए यह जांच करना जरूरी है कि क्या वे निर्धारित प्रदूषण के नियमों और उक्त बैठकों के नियमों को पूरा कर रहे हैं या नहीं। इसे प्रभावी करने के लिए न्यायाधिकरण ने सीपीसीबी, राज्य पीसीबी और जिला मजिस्ट्रेट गंगा नगर की संयुक्त समिति का गठन किया है।इसमें आगे आदेश दिया गया, राज्य पीसीबी और जिला मजिस्ट्रेट भट्टों के विरुद्ध तुरंत सहमति के बिना और उचित प्रक्रिया के बाद मुआवजे के आकलन और वसूली के लिए उपचारात्मक कार्रवाई कर सकते हैं। इसी तरह, कानून के अनुसार,अनुपालन न करने वालों और दायर की गई कार्रवाई की गई उन लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।केस की पृष्ठभूमि - जनवरी 2020 में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी के सामने यह खुलासा करते हुए एक बयान दर्ज किया था कि, उसने 225 अवैध ईंट भट्टों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए थे। अधिकरण ने नोट किया कि तब से अब तक, एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन कथित ईंट भट्टा अभी भी प्रयोग में हैं।हमारा मत है कि ईंट भट्टों के अवैध तरीके से किए जाने वाले ऑपरेशन और कानून की उचित प्रक्रिया के अनुसार अवैध कार्रवाई की अवधि के लिए पर्यावरण क्षतिपूर्ति की वसूली को रोकने के लिए आगे और अनुवर्ती कार्रवाई की जानी चाहिए। आवेदक ने यह भी प्रस्तुत किया कि चूंकि यह रिकॉर्ड का मामला है कि ये ईंट भट्ठा बिना किसी सहमति के काम कर रहे हैं, इसलिए कारण बताओ सूचना की आवश्यकता नहीं है। इसलिए एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों को ऐसे गुमराह ईंट भट्टों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और अवैध कार्रवाई की अवधि के लिए पर्यावरण क्षतिपूर्ति की वसूली करने का निर्देश दिया। कहा गया आदेश, व्यक्तिगत भट्टों को सूचना जारी नहीं की जा रही है, क्योंकि सांविधिक प्राधिकारी अपनी कानूनी शक्तियों का प्रयोग करते समय समुचित प्रक्रिया का पालन करेंगे जिसके लिए इस अधिकरण द्वारा सुनवाई की आवश्यकता नहीं है।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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