नया सबेरा नेटवर्क
कल्याण: कल्याण पूर्व स्थित विट्ठलवाडी श्मशान भूमि में डॉ.रमाकांत क्षितिज लिखित कहानी संग्रह " जीवन संघर्ष " का विमोचन संपन्न हुआ।जिसकी भूमिका महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ.शीतला प्रसाद दुबे ने लिखी है। विमोचन में श्मशान भूमि के व्यवस्थापक प्रकाश सांगले , लेखक डॉ.रमाकांत क्षितिज ,शांति विद्यालय के संचालक विनोद पांडे,मानवादी लेखक संघ के कार्याध्यक्ष शिक्षाविद् चंद्रवीर बंशीधर यादव, वरिष्ठ शिक्षक एवं पत्रकार विनोद कुमार दुबे, समाजसेवी जोगेंद्र यादव,विनय सिंह, जयप्रकाश सिंह,अरूण सिंह धनंजय कहार आदि उपस्थित थे। विमोचन के अवसर पर डॉ.क्षितिज ने सर्वप्रथम श्मशान भूमि के व्यवस्थापक प्रकाशसांगले,आर.के.पब्लिकेशन के रामकुमार एवं विमोचन समारोह में सभी गणमान्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि- गरुण पुराण में लिखा गया है कि " गर्भे व्याधौ श्मशाने च पुराणे या मतिर्भवेत् ।
सा यदि स्थिरतां याति को न मुच्येत बन्धनात् ॥चार जगह मनुष्य को अच्छे विचार आते हैं–गर्भ में, बीमारी में शमशान में और,भगवान् की कथा श्रवण करते समय,यदि ये विचार स्थिर और दृढ हों जाँय तो मानव भवबन्धन से मुक्त हो जाता है । इसीलिए जहां स्वयं ही मनुष्य को आत्मानुभूति या ज्ञान हो जाय, जीवन का मर्म समझ में आए, स्थूल,भौतिक शरीर का साथ यहीं तक,अब आगे की यात्रा अन्य छह शरीरों से होगी। चूंकि मानव की प्रगति अभी तक सात प्रकार के शरीरों तक ही हो पाई है। जिसमें से प्रथम शरीर भौतिक शरीर यहीं समाप्त हो जाएगी। ऐसी जगह पर ज्ञान की प्रतीक पुस्तकें ,उनका यहां विमोचन किया जा सकता है। हो सकता है , यह अटपटा सा लगे पर अस्वाभाविक नहीं, जीवन के यथार्थ से भागा नहीं जा सकता उसके साथ जीना ही "जीवन संघर्ष " है।
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