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उपभोक्ता अदालतें फर्जी, धोखाधड़ी, गढ़े दावों को आगे बढ़ाने के लिए वाहन नहीं है - पचास हजार का जुर्माना - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग | #NayaSaberaNetwork

उपभोक्ता अदालतें फर्जी, धोखाधड़ी, गढ़े दावों को आगे बढ़ाने के लिए वाहन नहीं है - पचास हजार का जुर्माना - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
शिकायतकर्ता ग्राहकों को झूठे दावे पेश करने से बचना चाहिए, अन्यथा जुर्माने और कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहें - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारतीय न्यायपालिका में न्याय पाने के लिए अनेक विकल्प खुले हुए हैं और अलग-अलग अदालतें, मंच आयोग बने हुए हैं जो संविधान और संबंधित कानूनों के दायरे में बिना किसी भेदभाव व जटिल प्रक्रिया के पूर्व निर्धारित प्रक्रिया अनुसार कार्रवाई संचालित कर उचित व सही न्याय प्रेषित करते हैं और यदि दोनों पक्षों में से एक को या दोनों को उस न्यायिक निर्णय में कुछ आपत्ति प्रतीत होती है, तो उसके ऊपर वाली कोर्ट में अपील दर्ज करा सकते हैं और यह प्रक्रिया अंतिम स्तर तक यानें सुप्रीम कोर्ट तक भी चल सकती है। बड़े बुजुर्गों की यह कहावत कि,"सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों", से यह न्यायिक प्रक्रिया में तो पूरी तरह फिट बैठती है। यदि कोई पक्ष किसी फर्जी झूठे या गड़े हुए किसी मुद्दे को आधार बनाकर न्यायिक प्रक्रिया में उतरता है और धोखाधड़ी के मंसूबों को पालकर अवैध लाभ या किसी तरह का ग़लत फायदा पाने की कोशिश करता है तो, न्यायिक प्रक्रिया में किसी न किसी स्तर पर उसकी पोल खुल जाती है और कानूनी कार्रवाई और जुर्माने की सजा का भागी हो जाता है।...बात अगर हम उपभोक्ता न्यायालय की करें तो ऐसे भी कुछ मामले आजाते हैं जहां ग्राहक, सेवा या वस्तु आपूर्तिकर्ता को, पैसे एंठनें के लिए फर्जी गड़े व धोखाधड़ी वाले मुद्दों को आधार बनाकर उपभोक्ता न्यायालयों में मामले दर्ज करवाते हैं, जिसमें आपूर्तिकर्ताओं और उपभोक्ता अदालतों दोनों के समय और धन की हानि होती है,पर जीत आखिर सच्चाई की होती है और फर्जी शिकायत करताओं को कानूनी कार्रवाई और भारी जुर्माने से पीड़ित होना पड़ता है...ऐसा ही एक मामला बुधवार दिनांक 10 फरवरी 2021 को माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग दिल्ली के माननीय श्री दिनेश सिंघल (प्रेसिडिंग मेंबर) की, सिंगल जज बेंच के सम्मुख प्रथम अपील क्रमांक 828/2013 जो के महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास शिकायत क्रमांक 78/2007 दिनांक 24 सितंबर 2013 से उत्पन्न हुई थी, जो शिकायतकर्ता बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य के रूप में आया, जिसमें माननीय बेंच ने अपने चार पृष्ठों के आदेश में कहा कि, राज्य आयोग ने अच्छी तरह से मूल्यांकन और अच्छी तरह से तर्क वाला आदेश पारित किया है और साबित कर दिया है कि बीमाकर्ता पर दायर दावा नकली गढ़ा हुआ और धोखाधड़ी दायक है और उसको आगे बढ़ाने के लिए उपभोक्ता अदालत कोई वाहन नहीं है। इस सख्त टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ता को ₹50 हज़ार का जुर्माना लगाकर दावा खारिज कर दिया आदेश कॉपी के अनुसार बेंच ने,न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के विरुद्ध बीमा शिकायत के संबंध में एक अपील सुनी। यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 19 के तहत दर्ज की गई थी।पृष्ठभूमि-शिकायतकर्ता, ने 2005-2006 की अवधि के लिए रु. 1 करोड़ की राशि के लिए पारगमन में अपने सामान के लिए  आश्वासन से बीमा पॉलिसी ली। 2005 में, याचिकाकर्ता के स्वामित्व वाले ट्रक द्वारा दवाओं का एक खेप भेजा गया। पारगमन के दौरान, यह ट्रक एक दुर्घटनाग्रस्त हों गया,और इस प्रकार, शिकायतकर्ता ने रु.31,35,841 का दावा किया। न्यू इंडिया एश्योरेंस ने इस दावे को खारिज कर दिया जिसके चलते शिकायतकर्ता ने महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के तहत एक शिकायत दर्ज की गई। हालांकि, 2013 के एक आदेश के माध्यम से, राज्य मंच ने शिकायत को खारिज कर दिया।व्यथित, शिकायतकर्ता ने राष्ट्रीय आयोग में एक अपील दायर की।हालांकि, बर्खास्तगी का अच्छी तरह से तर्क दिया गया था।परित्याग 2006 में जांच रिपोर्ट पर आधारित था।जांच रिपोर्ट-जांचकर्ता ने रिपोर्ट का निष्कर्ष निकाला और  यह साबित कर दिया गया कि, बीमा धारक द्वारा दावा नकली, गढ़े और धोखाधड़ी था.यह देखा गया कि बीमा का अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए बीमा धारक स्वयं अपना सामान क्षतिग्रस्त कर चुका था। उसने यह भी उल्लेख किया कि माल एक ही वाहन में ले जाया गया परंतु विभिन्न कंपनियों से संबंधित माल क्षतिग्रस्त नहीं थे। प्रस्तुत किए गए दस्तावेज नकली थे और आगे, माल उन पार्टियों के पास भेजा जा रहा था जो दवा के सामान के व्यापार में संलग्न नहीं हैं, वहां पुलिस भी नहीं थी। दुर्घटना भी ऐसी नहीं थी कि सामान वाहन से बाहर गिर सकता था।इस प्रकार, परिस्थितिजन्य साक्ष्य बीमाकर्ता का सदाशयी इरादा साबित हुआ। इसके आधार पर, बीमा कंपनी ने शिकायतकर्ता को अपने पत्र में यही कारण बताते हुए दावे का खंडन किया। पीठासीन बेंच ने कहा कि यह बहुतायत से जांच रिपोर्ट और अस्वीकरण पत्र से स्पष्ट था कि शिकायतकर्ता द्वारा किया गया दावा कपटपूर्ण था बीमा कंपनी द्वारा जांच बीमाकर्ता को देय राशि का निर्धारण करने में मौलिक है अन्वेषण बिना ठोस कारणों के जाँच नहीं की जा सकती या खारिज नहीं की जा सकती (यह, परंतु साथ ही यह भी कहा जाता है कि जांच में अभिलिखित औचित्य को विश्वसनीय होना चाहिए और जांच में विश्वास होना चाहिए) बेंच ने आगे कहा कि, रिपोर्ट अच्छी तरह से तर्कसंगत थी, तथ्यों का पता लगाया गया और उसके निर्णय में तर्कसंगत था। जांच-पड़ताल पर कोई भी कारण या प्रश्न नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि उपभोक्ता मंचों "नकली, गढ़े और धोखाधड़ी" के दावों को आगे बढ़ाने के लिए वाहन नहीं थे, जैसा कि, शिकायतकर्ता ने किया था। इस प्रकार, गलत नियोजित अपील के लिए, आयोग ने शिकायत को खारिज करते हुए, शिकायतकर्ता को रु. 50,000/- का खर्च लगाया। यह चार सप्ताह के भीतर चुकाया जाना चाहिए और राज्य आयोग कानूनी तौर पर कार्रवाई कर सकता है।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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