कोविड-19 महामारी और राष्ट्रीय लॉकडाउन के कारण सीमा अवधि विस्तार सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त किया - 15 मार्च 2020 से 14 मार्च 2021 अवधि को बाहर रखा जाएगा | #NayaSaberaNetwork

कोविड-19 महामारी और राष्ट्रीय लॉकडाउन के कारण सीमा अवधि विस्तार सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त किया - 15 मार्च 2020 से 14 मार्च 2021 अवधि को बाहर रखा जाएगा | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
कार्यपालिका, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक तथा सोशल मीडिया द्वारा यह जानकारी जनता तक पहुंचाना जरूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक महामारी कोविड-19 ने हर क्षेत्र पर कुठाराघात किया जिसमें न्यायपालिका क्षेत्र भी शामिल है भयंकर महामारी के चलते राष्ट्रीय लॉकडाउन में भारतीय न्यायपालिका से संबंधित पक्षकार, अधिवक्ता, न्यायपालिका क्षेत्र के कर्मचारी, न्यायधीश सहित हर संबंधित कर्मचारी ना  कोर्ट जा सकता और ना ही सुगमता से कार्यवाही की जा सकती थी, कुछ विशेष केसों को छोड़कर जो के वर्चुअल कोर्ट द्वारा किए जा रहे थे, बाकी सभी केसों को स्थगित कर दिया गया था। माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतःसंज्ञान रिट पिटिशन क्रमांक 3/2020 इन-रे के माध्यम से सुप्रीमकोर्ट ने कोविड महामारी और राष्ट्रीय लॉकडाउन केकारण उत्पन्न परिस्थितियों, स्थितियों के कारण उत्पन्न कठिनाइयों व परेशानियों के कारण भारत में स्थित सभी न्यायपालिकाओं की अंतिम सीमा अवधि का विस्तार अगले आदेश तक कर दिया गया था। जिसके कारण सभी संबंधित पक्षकारों ने राहत की सांस ली थी, क्योंकि स्थिति ऐसी उत्पन्न हो गई थी कि किसी भी समझ में नहींआ रहा था कि वह क्या करें और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति का स्वतःसंज्ञान लेकर सभी तारीखों को पूरे देश में जो फाइलिंग, आवेदन, याचिका सूट्स अपील, जो टाइमलिमिट अधिनियम अवधि में थे, जिसमें यह सब प्रक्रिया दाखिल करने की एक निर्धारित अवधि होती है, को अगले आदेश तक बढ़ा दिया। यदि वह अवधी निकल जाती है तो पक्षकार को बहुत परेशानियों का सामना कर, कंडोनेशन आफ डिले इत्यादि प्रक्रियाएं करनी होती है। अतः सुप्रीम कोर्ट ने राज्योऔर केंद्र दोनों के इस लिमिटेशंस कानून में निर्धारित अवधि को अपने 27 मार्च 2020 के एक स्वतःसंज्ञान आदेश से 15 मार्च 2020 से लेकर अगले आदेश तक अवधि सीमा विस्तार कर दिया था। जबकि अर्जेंट मैटर वर्चुअल कोर्ट से चालू थे,जबकि अब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार दिनांक 8 मार्च 2021 को माननीय तीन जजों की एक बेंच जिसमें माननीय भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद एम बोबडे, माननीय न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव तथा माननीय न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट की एक बेंच ने अपने तीन प्रुष्ठों के आदेश में कहा कि, भारतीय अटॉर्नी जनरल के सुझाव को विचार करते हुए 15 मार्च 2020 से 14 मार्च 2021 की अवधि को आंकलन में नहीं लिया जाएगा याने अवधी आंकलन 15 मार्च 2021 से होगी और भारत सरकार को आदेशित किया कि कंटोनमेंट झोन की गाइडलाइंस में यह वाक्य संशोधित कर दिया जाए कि टाइम बाउंड आवेदन लीगल परपस सहित समयावधि के संबंध में संशोधन कर दें। आदेश कॉपी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोविड-19 महामारी और राष्ट्रीय लॉकडाउन के कारण पिछले साल मार्च में कोर्ट द्वारा मामलों को दायर करने की सीमा अवधि विस्तार के फैसले को वापस ले लिया है। बेंचने कहा कि हमारा विचार है कि आदेश दिनांक 15.03.2020 ने अपने उद्देश्य की पूर्ति की है और महामारी से संबंधित बदलते परिदृश्य को देखते हुए सीमा विस्तार को समाप्त किया जाना चाहिए।हालांकि, हमने महामारी के अंत को नहीं देखा है, इसमें काफी सुधार है। लॉकडाउन को हटा दिया गयाहै और देश सामान्य स्थिति में लौट रहा है। लगभग सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरण शारीरिक रूप से या वर्चुअल तरीके से काम कर रहे हैं, "इन रे : "सीमा अवधि विस्तार के संज्ञान" वाले स्वत:संज्ञान मामले में आदेश पारित किया गया।बेंच, ने निम्नलिखित निर्देशों के साथ स्वत: संज्ञान मामले का निपटारा किया- 1) किसी भी सूट, अपील, आवेदन या कार्यवाही के लिए सीमा की अवधि की गणना करते हुए, 15.03.2020 से 14.03.2021 तक की अवधि को बाहर रखा जाएगा। इसके अलावा, 15.03.2020 से सीमा की शेष अवधि, यदि कोई हो, 15.03.2021 से प्रभावी हो जाएगी। 2) ऐसे मामलों में जहां सीमा 15.03.2020 से 14.03.2021 के बीच की अवधि के दौरान समाप्त हो जानी थी, सीमा की वास्तविक शेष अवधि के बावजूद, सभी व्यक्तियों के पास 15.03.2021 से 90 दिनों की सीमा अवधि होगी। सीमा की स्थिति में, शेष अवधि 15.03.2021 से प्रभावी होगी, या 90 दिनों से अधिक है, तो जो लंबी अवधि है,वो लागू होगी। 3)15.03.2020 से 14.03.2021 तक की अवधि,मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के खंड 23 (4) और 29A , वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 धारा 12 और निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के प्रोविज़ो ( बी) और (सी) के तहत निर्धारित अवधि और किसी भी अन्य कानून, जो कार्यवाही, बाहरी सीमा (जिसमें अदालत या ट्रिब्यूनल देरी माफ कर सकते हैं और विलंबित करने और कार्यवाही की समाप्ति के लिए सीमा की अवधि निर्धारित करते हैं,गणना में शामिल नहीं होगी। 4)भारत सरकार व राज्य के लिए, प्रतिबंधित क्षेत्रों के लिए दिशानिर्देशों में संशोधन करेगी - चिकित्सा आपात स्थिति, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के प्रावधान और अन्य आवश्यक कार्यों, जैसे समयबद्ध आवेदन, कानूनी उद्देश्यों के लिएविनियमित आवागमन और शैक्षिक और नौकरीसे संबंधित आवश्यकताओं की अनुमति दी जाएगी।पिछले साल 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतोंऔर ट्रिब्यूनलों में याचिका दाखिलकरने की सीमा अवधि 15 मार्च, 2020 से अगलेआदेशों तक बढ़ा दी थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंचने इस आदेश को कोविड-19 महामारी द्वारा उत्पन्न कठिनाइयों पर ध्यान देते हुए पारित किया। बाद में,जुलाई 2020 में,बेंचने स्पष्ट किया कि यह आदेश मध्यस्थता और सुलह अधिनियम,1996 की धारा 29A और 23 (4) और वाणिज्यिक न्यायालयों अधिनियम, 2015 की धारा 12A पर लागू होगा। दिसंबर 2020 में, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा था कि स्वत:संज्ञान सीमा अवधि विस्तार अभी भी लागू है। बेंच ने पिछले साल जुलाई में स्वत:संज्ञान कार्यवाही में एक आदेश पारित किया था जिसमें व्हाट्सएप और अन्य ऑनलाइन मैसेंजर सेवाओं के माध्यम से नोटिस की सेवा को अनुमति दी गई थी।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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