नया सबेरा नेटवर्क
जितना जिएँ हम वतन के लिए,
जब भी मरें, हम वतन के लिए।
नहीं कुछ चाहिए जहां से हमें,
हमारी हर सांस है चमन के लिए।
बहार -ए - गुलशन सलामत रहे,
आपस में सबसे मोहब्बत रहे।
बहायेंगे लहू शहीदों के जैसे,
ऐसी हमारी कुछ किस्मत रहे।
दूध के जैसी यहाँ नदिया बहें,
गंगा-जमुनी हमारी विरासत रहे।
बनी रहे सरफ़रोशी की तमन्ना,
इस माटी की अमर शहादत रहे।
माते ! तू देना अपनी दुआयें।
जर्रा-जर्रा महके अमन की क्यारी।
हृदय हो अलौकित तेरी प्रभा से,
खिले नित्य नूतन फूलों की डाली।
रखें हम सुरक्षित देश की सीमाएँ।
हम भी तो दूध का कर्ज चुकाएँ।
लहराता रहे आसमां में तिरंगा,
आयें लिपट के तो तिरंगे में आएँ।
रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई
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