नया सबेरा नेटवर्क
एक जैसी सबकी किस्मत नहीं,
हमेशा सभी की जरुरत नहीं।
खुदा के नाम से लीलते जिंदगी,
हरेक में देखो! शराफत नहीं।
बंजर दिल वो बनाकर हैं बैठे,
बहारों की कोई हसरत नहीं।
दिन होता है, यूँ होती है रात,
पीने से उनको फुरसत नहीं।
सूरज बांधकर भले हैं सोते,
समाज में उनकी इज्जत नहीं।
झूठ की खोले हैं दर्द की दुकान,
कुदरत की उन पर रहमत नहीं।
मौत बटोरेगी झाड़ू की तरह,
इसमें तो कोई सियासत नहीं।
दुश्मनी साध के बैठे हैं कब से,
उन्हें दुनिया से मोहब्बत नहीं।
खाली हाथ जायेंगे सबको पता,
श्मशान सजाने की जरुरत नहीं।
हँसी के साथ जब भींगती पलकें,
वहाँ कुछ छिपाने की जरुरत नहीं।
बोझ गमों का जब मिलके उठाते,
जमाने से कोई शिकायत नहीं।
सोने की रोटी कोई ख़ाता नहीं,
वेदना की कोई वकालत नहीं।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई,
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