नया सबेरा नेटवर्क
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी,(2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
सबको पढ़ा - लिखा के,
रस्ता दिखाए तुम,
बेटी से कहीं ज्यादा,
बेटों को चाहे तुम।
बेटों ने ऐसे हाल में,
क्यों छोड़ा है बाबू जी,(2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
निचोड़ कर जवानी,
खड़ा किए महल।
जैसे उगे हैं पंख,
परिन्दे किए वो छल।
रो - रो के बुनियाद,
कुछ कह रही है बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
बच्चों के अरमान और
आसमान बने तुम।
चलती - फिरती बैंक,
और दुकान बने तुम।
फाँके में कट रहे,
क्यों दिन ये बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
पाते नहीं हो आजकल,
सूखी भी रोटियाँ।
किस बिल में जा छुपी हैं,
फूलों की डालियाँ।
आंसू के सैलाब में,
क्यों डूबे हो बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
कुछ दिन के हो मुसाफिर,
हक़ीक़त को जान लो।
पैसे से रखती यारी,
दुनिया को जान लो।
जख्मों की ये तुरपाई,
न होगी बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
अच्छाइयों का रोज -रोज,
हो रहा है खून।
माता -पिता को छोड़के,
वो बस रहे रंगून।
खून अपना पानी,
क्यों हुआ है बाबू जी।
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
जो बो रहे हैं कांटे,
उनको धंसेंगे वो।
बेटे भी उनके साथ में,
कैसे रहेँगे वो।
उधार कोई आंसू,
न देगा बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी, (2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार) मुंबई,
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