नया सबेरा नेटवर्क
आईना खुद देख,तब दिखा आईना,
तरफदारी में उतरता नहीं आईना।
मेरे चेहरे पे पड़ जो रही झुर्रियां,
नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना।
टूटकर बिखर जाना, गवारा इसे,
झूठ का पैर छूता नहीं आईना।
क्या जाने भेद, गोरे -काले का ये,
जैसा जो दिखता, दिखाता आईना।
सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो,
किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना।
फितरत समझता है हर आदमी का,
सच से बे-खबर नहीं रहता आईना।
बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ,
उन्हें नज़र नहीं आता वही आईना।
गला कोई दबाता झूठ आज बोल,
खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना।
पत्थरों के बीच रहता बड़ी शान से,
देखो! डरता कभी न उससे आईना।
फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा,
पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना।
वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो,
यही मंत्र हमको सिखाता आईना।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई
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