नया सबेरा नेटवर्क
यह कैसा इंसाफ है मेरे भगवान का कोई यह सोच कर परेशान है कि आज क्या खाया जाए और कोई यह सोच कर परेशान है कुछ भी मिल जाए खा लेंगे इंसान तो हर घर में पैदा होते हैं पर इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है इंसान चांद पर पहुंच गया समुद्र के तट तक पहुंच गया पर अफसोस इस बात का है इंसान इंसानियत का नहीं पहुंच सका यह दुनिया पढ़े लिखे लोगों से भर गई मगर इंसानियत से खाली हो इस दुनिया में अब इंसानियत शर्मिंदा है यहां तो अपने को छोड़कर गैरों से रिश्ते निभाए जाते हैं अपनापन और प्यार का कोई महत्व ही नहीं रखता यहां तो बस पैसे से रूप दिखाए जाते हैं इंसानियत ही इंसान को इंसान बनाती है इंसानियत दिल से होती है हैसियत मे नहीं उपरवाला कर्म देता है वसीयत नहीं जरूरत नहीं है कि जिस इंसान में सांसे नहीं है तो वह मुर्दा है जिसमे इंसानियत नहीं वह कौन सा जिंदा है काश भगवान ने थोड़ी और होशियारी दिखाई होती इंसान को थोड़ा कम इंसानियत बनाई होती.
युवा लेखिका दिव्या मिश्रा जौनपुर उत्तर प्रदेश
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