नया सबेरा नेटवर्क
जिन्दा किधर हैं कि मर जायेंगे,
जैसे बुलाया, चले जायेंगे।
प्यासे हैं धन के युगों से हम,
खुले हाथ एक दिन चले जायेंगे।
करेंगे निष्काम जो यहाँ पे ,
नाम जहां में वो कर जायेंगे।
साथ लाये न कुछ, न ले जायेंगे,
मरने पर फिर भी नजर आयेंगे।
जवानी के मौसम कहाँ हैं टिके?
मतकर नाज़, रंग उतर जायेंगे।
ऐसे नहीं रूठा करते सुनो !
ये जख्म एक दिन भर जायेंगे।
खिले इन फूलों को हँसने तो दे,
यक़ीनन कल ये बिखर जायेंगे।
वक़्त की मार से गांव आ गए,
हालात सुधरते शहर जायेंगे।
दुश्मनी का सफर लंबा अच्छा नहीं,
एक दूसरे से लड़कर मर जायेंगे।
ऐ ! चरागों, हिम्मत से काम लो,
तूफां नहीं टिकते, गुजर जायेंगे।
मौत बटोरेगी झाड़ू के जैसे,
मुसाफिर हैं अपने घर जायेंगे।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई
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