नया सबेरा नेटवर्क
ऊपर से नीचे आज रंगने दे,
अनंत प्यास मेरी बुझने दे।
पत्थर दिल न समझे ये दुनिया,
आँखों से जाम जरा पीने दे।
होली की मस्ती सब पे है छाई,
प्रेम - रस आज जरा चढ़ने दे।
लोगों का गम भी बाँटना सीख,
अबीर- ग़ुलाल जरा मलने दे।
दिल का आंगन सूना पड़ा है,
अंदर के जख्म जरा भरने दे।
मास्क लगाए हैं भले मुँह में,
धीरे -धीरे अंगियाँ भिगोने दे।
पिचकारी होगी आज न खाली,
मौजे-ए- हवा थोड़ी बहने दे।
खोने दे एक दूजे में आज,
विरह की तपन ठंडी होने दे।
नयनों में है लाखों मन शराब,
प्यासा है जो उसे पीने दे।
जिन्दा रहे न नफ़रत जहां में,
गंगा-जमन की धारा बहने दे।
चाहे खेले कोई भी होली,
लाज - हया थोड़ी रहने दे।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार), मुंबई
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