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न्यायपालिका का आदेश सबके लिए सर्वोपरि - अवज्ञा करने पर अवमानना का दोषी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत एक विश्व प्रसिद्ध सर्वोपर लोकतांत्रिक देश है और यहां स्थापित संविधान और कानूनों के सिस्टम पर प्रक्रियाए पूर्ण होती है। हालांकि अनेक जटिलताएं भी उत्पन्न होती है परंतु अगर समस्या होती है तो उसका समाधान भी होता है। हर व्यवस्था की एक प्रक्रिया होती है जिसके आधार पर हर समस्या का समाधान होता है....बात अगर हम अस्थाई कर्मचारियों की करें तो पूरे देश में लाखों-करोड़ों अस्थाई कर्मचारी हैं। एक गांव की ग्राम पंचायत से लेकर बड़े-बड़े ऑफिसों तक में, अस्थाई कर्मचारी नियुक्त हैं जो सालों से अस्थाई कर्मचारी के रूप में कार्यरत करते आ रहे हैं। उसी तरह उसका एक रूप,सविंदत्मक कर्मचारी भी है। आज रोजगार के क्षेत्र में अधिकतर व्यवस्थापन व सरकारें अस्थाई कर्मचारी औरसंविदात्मक कर्मचारियों को रखना अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि इनके पीछे सरकारी प्रक्रियाओं का पालन नहीं करना होता, या होता भी है तो इतना कठिन नहीं होता जितना स्थाई कर्मचारियों के रूप में होता है यही कारण है कि स्थाई करने की बात न तो निजी क्षेत्र में और ना ही सरकारी के क्षेत्र में होती है। अगर हम एक छोटी सी सिटी में नगर परिषद की बात करें तो वहां भी सैकड़ों कर्मचारी अस्थाई या संविदात्मक नियुक्ति के रूप में होंगे और समय-समय पर स्थाई या नियमितीकरण के लिए आंदोलन या सरकारों को ज्ञापन पेश करते रहते हैं। हालांकि मेरा निजी अनुमान है कि अधिकतर ऐसे कर्मचारियों को न्यायपालिका, कार्यपालिका के द्वारा जारी निर्देशों का ज्ञान नहीं होगा जिसके बल पर नियमितीकरण की प्रोसेस है,परंतु यह एक सच्चाई है कि कोविड 19 के कारण ऐसे कर्मचारियों के रोजगार पर बहुत असर पड़ा है और उनकी नौकरियां चली गई है हालांकि अभी धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने से स्थिति में सुधार हो रहा है... इसी विषय पर आधारित एक मामला दिनांक 22 फरवरी 2021 को माननीय केरला हाईकोर्ट में माननीय दो जजों की एक बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति ए के जयशंकरन नांबियार तथा माननीय न्यायमूर्ति गोपीनाथ पी की बेंच में डब्ल्यू ए क्रमांक 2084/2018 रिट पिटिशन क्रमांक 2660/2017 दिनांक 8 अगस्त 2018 केरल हाईकोर्ट से उदय हुआ था याचिकाकर्ता बनाम आई एच आर डी मुख्य सचिव केरला सरकार व अन्य प्रतिवादी मामले में माननीय बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलों की सुनवाई कर उसी दिन अपने 11 पृष्ठों के अपने आदेश में कहा सुप्रीम कोर्ट के नियमितीकरण पर जारी निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अस्थाई कर्मचारियों को नियमित नहीं किया जा सकता माननीय बेंच ने आदेश कॉपी में अनेक सुप्रीमकोर्ट के साईटेशनस का उल्लेख किया आगे आदेश काफी के अनुसार बेंच ने केरल सरकार के मुख्य सचिव को सरकारीसंगठनों, संस्थानों, विभागों और निगमों में अस्थायी कर्मचारियों के नियमितीकरण पर रोक लगाने के लिए निर्देश जारी करने के लिए कहा।बेंच ने पाया कि कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश सुप्रीमकोर्ट द्वारा कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमा देवी और अन्य में घोषित कानून के विपरीत जारी किए जा रहे हैं। इन्हें अवैध और सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून के खिलाफ कहते करते हुए, बेंच ने अपने ही प्रस्ताव पर मुख्य सचिव को पक्ष बनाया और निर्देश दिया कि इस आशय की घोषणा को सभी सरकारी निकायों को सूचित किया जाए।रोचक यह है कि,अदालत के ये निर्देश इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट (IHRD) के दो अस्थायी कर्मचारियों की ओर से दायर एक अपील को खारिज करते हुए आए हैं, जिन्होंने संगठन में दूसरों की तरह समान शर्तों पर नियमितीकरण की मांग की थी। अपीलकर्ताओं ने कहा कि उच्च न्यायालय के पहले के एक फैसले में IHRD से आग्रह किया गया था कि वे नियमितीकरण पर फैसला, एक ही पैमाने से लें, जिसे समान स्थिति के अन्य कर्मचारियों के मामले में अपनाया गया था। यह दावा करते हुए कि अपीलकर्ताओं से वास्तव में वैसा व्यवहार नहीं किया गया, जो समान पद पर नियुक्त कर्मियों के साथ किया गया था, उनके वकील ने IHRD की ओर से अपने कुछ अस्थायी कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए जारी किए गए आदेशों को दलील के साथ पेश किया। बेंच द्वारा निर्दिष्ट फैसलों से निम्नलिखित सिद्धांतों की चुना जा सकता है - यह तय कानून है कि एक कर्मचारी नियमितीकरण का दावा केवल इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि वह कुछ समय से एक पद पर काम कर रहा है। ए.उमरानी बनाम कोऑपरेटिव सोसाइटी; (2004) 7 एससीसी 112 - संविदा,आकस्मिक या दैनिक वेतन भोगी तदर्थ कर्मचारी, सार्वजनिक रोजगार के लिए संवैधानिक योजना के दायरे से बाहर नियुक्त, शामिल किए जाने, नियमित किए जाने, या स्थायी रूप से सेवा में जारी रहने की वैध अपेक्षा नहीं रख सकता है, इस आधार पर कि वे लंबे समय से सेवा में है। इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड बनाम वर्कमैन,इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड; (2007) 1 एससीसी 408 - ऐसे मामले हो सकते हैं, जहां विधिवत खाली पड़े पदों पर विधिवत योग्य व्यक्तियों की अनियमित नियुक्तियां (गैरकानूनी नियुक्तियां नहीं) हुई हों और कर्मचारी दस साल या उससे अधिक समय तक, अदालतों या अधिकरणों के आदेशों के हस्तक्षेप के बिना, काम करते रहे हों। ऐसे कर्मचारियों की सेवाओं के नियमितीकरण के सवाल पर, मेरिट के आधार पर विचार किया जा सकता है। उस संदर्भ में, राज्य और उसके साधानों को, ऐसी अनियमित रूप से नियुक्त की गई सेवाएं, जिन्होंने दस साल या उससे अधिक समय तक विधिवत स्वीकृत पदों पर काम किया है, लेकिन अदालतों या अधिकरणों के आदेशों के तहत नहीं है, को एक बार के उपाय के रूप में नियमित करने के लिए कदम उठाने चाहिए..संविधान पीठ, सचिव, कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमा देवी और अन्य(2006) 4 एससीसी 19,यह कहते हुए कि उमा देवी के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले किसी भी नियमितीकरण को रद्द किया जाएगा, खंडपीठ ने कहा कि वह केवल IHRD द्वारा किए गए नियमितीकरण को अवैध घोषित करने से परहेज कर रही थी क्योंकि नियमित व्यक्ति कार्यवाही के पक्षकार नहीं थे। मामले के तथ्यों पर,न्यायालय ने एकल न्यायाधीश की खंडपीठ के फैसले से सहमति व्यक्त की, जिसके तहत अपीलकर्ताओं को विभिन्न श्रम कानूनों के तहत श्रम न्यायालय/अन्य मंचों के समक्ष तथ्यों (यदि कोई हो) के साथ अपने दावों को उठाने की आवश्यकता थी। मुख्य सचिव के निर्देशों के साथ, जिसे अदालत ने 3 सप्ताह के भीतर सरकारी संगठनों को सूचित करने की आज्ञा दी, अपील खारिज कर दी गई। उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन की खंडपीठ ने एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए विभिन्न सरकारी संगठनों, संस्थानों, और निगमों में अस्थायी और संविदा कर्मचारियों को नियमित करने पर रोक लगा दी थी।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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