नया सबेरा नेटवर्क
अजय पाण्डेय
निशातुन्ननिशा मोहनी की सम्पूर्ण अवधारणा को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आत्मसात किया था। निशातुन्न निशा मोहानी एक विश्व प्रख्यात नायिका थीं और भारत के स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं में उनका नाम भी अदब से लिया जाता है जिनकी आजादी की पूरी अवधारणा को महात्मा गांधी ने स्वयं में आत्मसात किया था। निशातुन्ननिशा का जन्म 1884 में अवध में हुआ था। निशातुन्न की शादी हसरत मोहानी से हुई थी। हसरत मोहानी खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी और एक महान शायर भी रहे। यह हसरत मोहानी ही थे जिन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया था। बेगम निशातुन्न निशा अंग्रेजी हुकूमत की घोर आलोचक रहीं। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के आंदोलन को पूर्ण सहयोग किया था। तिलक सख्तगीर आंदोलन के हामी थे। बेगम निशातुन्न ने अपने पति को बहुत नैतिक सहयोग किया। हसरत मोहानी को अंग्रेज विरोधी लेख लिखने पर गिरफ्तार किया गया था। बेगम निशातुन्न ने तब हसरत को यह कहा कि वह अंग्रेजों के जुल्म को पूरी दिलेरी से बर्दाश्त करें लेकिन अपना पूरा ख्याल रखें। बाद में बेगम ने अंग्रेजों के कानूनी कार्यवाहियों का डटकर मुकाबला किया जिन्होंने हसरत मोहानी के अखबार उर्दू-ए-मुअल्लाका प्रकाशन जारी रखा। एक बार बेगम में लार्ड माटुंगा के इस मशविरे का मजाक उड़ाया जिसमें उन्होंने निशात को कहा था कि वह क्रांति के मार्ग को छोड़ दें। उन्होंने कहा था कि आप आजादी के मतवालों को रिहा क्यों नहीं करते जबकि आप आयरलैंड के क्रांतिकारियों को रिहा कर रहे हैं। बेगम ने असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन में भरपूर काम किया। यह बेगम ही थीं जिन्होंने पहला खादी कपड़ों की दुकान अलीगढ़ खिलाफत स्टोर के नाम से शुरू की। इससे होने वाली आमदनी से वह गांधी जी की पत्रिका यंग इंडिया को पूरा सहयोग करती थीं। बाद में बेगम ने कांग्रेस छोड़ दिया और वह किसानों एवं मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ती रहीं। बेगम की मौत 18 अप्रैल 1937 को हुई। भले ही बेगम निशातुन्न निशा इस दुनिया से रुखसत हो गईं परंतु उनका योगदान यादगार है। लोग उनकी याद में आज भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हैं और भविष्य में भी लगाते रहेंगे।
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