प्रिया उपाध्याय
अब तक नौकरी करने वालों को बेसब्री से वीकेंड का इंतज़ार रहता था। अब वक्त बदल गया है। लोग बदल गए हैं। ऑफिस अब ऑफिस से शिफ्ट होकर घर में आ गया है। काम के घंटे बढ़ गए हैं। बॉस के भाव बढ़ गए हैं। नौकरी बचाये रखनी है तो बॉस से बनाये रखना है।
जब से कोरोना आया है तब से पूरी दुनिया बदल गयी है। कोरोना आया तो लॉक डाउन को साथ ले आया। फिर धीरे धीरे लॉक डाउन तो चला गया पर कोरोना छुपकर लोगों के बीच बना रहा।
प्रेम तो प्रेम होता है। लॉक डाउन और कोरोना का प्यार जग जाहिर है। दोनों को साथ साथ रहना है।
पहले साथ साथ रहना था। अब साथ तो मिलता मगर वीकेंड का।
कहानी कुछ इस तरह है। कुछ साल पहले की बात है। कोरोना और लॉकडाउन दोनों एक ही शहर में पैदा हुए थे। बचपन के लंगोटिया यार थे दोनों। एक स्कूल पढ़े। दोनों ने एक ही कॉलेज में पढ़ाई भी की। अब बारी आई जॉब करने की। बैठे-बैठे दोंनों दुःखी होकर बहुत सोच रहे थे। क्योंकि दोनों के बिछड़ने का समय जो आ गया था। तभी कोरोना महाशय को एक तरक़ीब सूझी। उसने लॉकडाउन महाराज से कहा, " लॉकडाउन यार हम दोनों एक जगह एक साथ काम कर सकते हैं। बस थोड़ी सी ही मेहनत करनी होगी। एक साथ एक जगह काम करने से फायदा यह होगा कि जब मैं थकने लगूँगा तब तुम अपना काम शुरू करना और जब तुमको थकाई आएगी तब मैं फिर से काम करूँगा।" लॉकडाउन महाराज बोले, "यार तरकीब तो अच्छी निकली पर यह सब होगा कैसे?"
कोरोना ने कहा, "बताता हूँ, बहुत ध्यान से सुनना, काम तो आसान है और फायदा भी बहुत ज्यादा। पहले हम एक ऐसे शहर में जाएंगे जहाँ लोग कीड़े-मकौड़े पर शोध करते हैं। फिर हम कुछ ऐसा करेंगे जिससे मैं शक्तिशाली बन जाऊँ, फिर क्या जहाँ-जहाँ मैं जाऊँगा वहाँ-वहाँ तुम मेरे साथ चलोगे।
कोरोना महाशय की मेहनत और ईमानदारी रंग लाई। ठीक वैसा हुआ जैसे लॉकडाउन महाराज ने मिलकर प्लान किया था। बहुत से देश, गाँव, शहर में दोनों ने मिलकर खुशी-खुशी काम किया। दोनों को साथ में ख्याति प्राप्त हुई। जिस किसी भी न्यूज़ चैनल पर देखो इनकी की चर्चा हुई। कई महीने काम करके दोनों थक गए थे। एक दिन लॉकडाउन महाराज ने कहा, "कोरोना दोस्त! अब बस हुआ चलो कुछ दिनों कहीं शांत जगह चलकर आराम करते हैं।" तभी कोरोना महाशय ने कहा, "यार तू कैसी बात कर रहा है, अगर हम दोनों ने एक साथ काम करना बंद कर दिया तो, हमें लोग भूल जाएंगे, हमने अभी तक जितना नाम कमाया है सब डूब जाएगा।" लॉकडाउन महाराज ने कहा, "देख कोरोना मैं बहुत थक हुआ हूँ, मुझसे अब काम नहीं होगा। अब तू ही बता मैं क्या करूँ?" कोरोना महाराज ने कहा, "चल कुछ दिन हम छुट्टी ले लेते हैं।"
कुछ महीने बीत गए। कुछ दिनों से कोरोना न्यूज़ चैनेल देखने लगा था, एक दिन उसे महसूस हुआ कि किसी भी न्यूज़ चैनल पर उन दोनों की कोई चर्चा ही नहीं है। उसने सोचा अब बस हुआ आराम करना, लगता है अब फिर से काम पर लगना होगा। उसने लॉकडाउन से कहा, "चल अब अपने काम पर फिर से लगते हैं।" किंतु लॉकडाउन अभी और आराम करना चाह रहा था। पर कोरोना नहीं माना। अंत में उसने लॉकडाउन से कहा, "तू आरम कर पहले मैं जाता हूँ। वहाँ अपने पाँव फिर से जमाता हूँ फिर तू आ जाना। लॉकडाउन ने कहा, "ठीक है।"
कोरोना महाशय अब की बार फिर से दिलों-जान से अपने काम पर फिर से लग गए। एक बार फिर से लोगों के लापरवाही रूपी साथ पाकर वह चैनलों पर सुर्खियां बटोरने लगा।
एक दिन कोरोना को अपने दोस्त लॉकडाउन की बहुत याद आ रही थी। कोरोना ने फ़ोन करके उसे अपने पास बुला लिया। उसने कहा, " अब से हम अपना काम आधा-आधा बांट लेते हैं। मैं पूरे बाकी दिनों में काम करूँगा। तुम वीकेंड में काम करना इससे लोग हम दोनों से वाकिफ़ रहेंगे। लॉकडाउन ने कहा, "ठीक है मेरे दोस्त तेरे लिए मैं अपना वीकेंड खराब करूँगा पर तुझे नाराज़ नहीं करूंगा। बस तू इसी तरह मेहनत करते रहना। इससे हम जल्द ही हम फिर से सभी देशों, गाँवो और शहरों में अपना पैर पसार लेंगे।
और फिर कुछ दिन बाद दोनों की मनोकामना पूरी हो गयी। लेकिन अब वक्त बदल गया था। लोग और सरकार दोनों समझ गए थे।
लोग जागरूक तो थे पर लापरवाही की भारतीय आदत छूटी नहीं थी। आदत ने अपना रंग दिखाया और वीकेंड के लिए ही सही कोरोना और लॉक डाउन दो जिगरी यारों को मिलाने का बंदोबस्त कर दिया।
महाराष्ट्र में अब हर वीकेंड यानी शुक्रवार की शाम 8 बजे से सोमवार की सुबह 7 बजे तक कोरोना और लॉक डाउन साथ- साथ रहते हैं। और ख़ुशी से गाना भी गाते हैं- हम साथ-साथ हैं।
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