नया सबेरा नेटवर्क
देश का नौजवान टूट रहा,
ज़िन्दगी का वितान टूट रहा।
घूम रहा वायरस गली -गली,
उससे ये जहान टूट रहा।
नहीं रहे महफूज़ वृद्ध भी,
घर- घर आसमान टूट रहा।
शहर की आँख से बहते आंसू,
गांव का किसान टूट रहा है।
लौ बढ़ाई जो तरक्की की
उसका खानदान टूट रहा।
हसरतें राख हुईं लोगों की,
सांसों का मचान टूट रहा।
कुदरत के साथ हुई गुस्ताखी,
इंसान का ग़ुमान टूट रहा।
वक़्त ने छीन ली हैं नीदें,
धैर्य का इम्तिहान टूट रहा।
बचेगी मास्क से ही ज़िन्दगी,
मौत का एहसान टूट रहा।
मुद्दत हो गए देख मुस्कुराये,
धड़कनों का गुलदान टूट रहा।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
from Naya Sabera | नया सबेरा - No.1 Hindi News Portal Of Jaunpur (U.P.) https://ift.tt/3ny7Tx9
0 Comments