नया सबेरा नेटवर्क
ज़िन्दगी का सफर,ये कैसा सफर,
क़ैद हो गए आज अपने ही घर।
गुम हो गई कल की दुनिया कहाँ?
वीरान हुए आज शहर के शहर।
इम्तिहान की घड़ी,सब्र रखो जरा,
जहरीली फिज़ा ये बदल जाएगी।
मौत की बारिश से बच के रहो,
सभी की ज़िन्दगी संवर जाएगी।
बिना मास्क भीड़ में जाना नहीं,
वायरस से भी खौफ खाना नहीं।
सरकारी ऐलान सर-आँखों रखो,
हाथ से हाथ तू मिलाना नहीं।
हवा के पांव फिर घूँघरू बंधेगे,
जमाने के मेले फिर से सजेंगे।
विरह जगाएगी फिर कोयलिया,
सावन के झूले फिर से पड़ेंगे।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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