नया सबेरा नेटवर्क
जौनपुर। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम दीपशिखा व संपूर्ण भारत में नारी वीरता और पराक्रम की प्रतीक अमर शहीद वीरांगना झलकारी बाई के 163वें शहादत दिवस पर उनके अनुयायियों ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन वंदन किया।
सोमवार को रायबरेली के सारस होटल समीप स्थित झलकारी बाई चौराहे पर स्थापित वीरांगना झलकारी बाई प्रतिमा के समीप उनके अनुयायियों ने सुबह उन्हें पुष्पांजलि अर्पित किया। पुष्पांजलि के बाद लोगों ने उनके जीवन दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनके जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं पर चर्चा करते हुए समाजसेवी सुनील दत्त ने कहा कि 1857 के स्वाधीनता आंदोलन के कुछ महीनों बाद अंग्रेजों द्वारा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को अपदस्त करके झांसी पर कब्जा करने का नापाक प्रयास किया गया था, तब झांसी से 4 कोस दूर भोजला गांव में कोरी परिवार में जन्मी झलकारी बाई कोरी ने झांसी की आन- बान- शान के लिए क्रांतिकारी योद्धा के रूप में जौहर दिखाते हुए, बहादुरी और कौशल का परिचय देते हुए रानी लक्ष्मीबाई का साथ दे अंग्रेजों से युद्ध करते हुए अपने पति पूरन कोरी के साथ 5 अप्रैल 1858 को वीरगति को प्राप्त हुई थी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वीरांगना झलकारी बाई कल्याण एवं विकास परिषद के अध्यक्ष राम सजीवन धीमान ने कहा कि उन्होंने जाति धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। महासचिव गुप्तार वर्मा ने शहादत दिवस के इस मौके पर मांग की कि भारत में नारी सम्मान और स्वाभिमान की प्रतीक वीरांगना झलकारी बाई के नाम को वीरता पुरस्कारों में शामिल कर झलकारी बाई वीरता पुरस्कार की स्थापना की जाए तथा जूनियर हाई स्कूल से उच्च कक्षाओं के पाठ्यक्रमों एवं एनसीआरटी की पुस्तकों में उनके जीवन दर्शन को सम्मिलित किया जाए। इस अवसर पर राजेश कुरील, रोहित कुमार चौधरी और राजेंद्र कुमार बौद्ध ने भी अपने विचार रखे। श्यामलाल, राकेश कुमार, सरोज अनिल कुमार, डॉ देवेंद्र भारती, राम लखन, हरिकेश कित्याभ, विद्यासागर, विनोद कुमार वर्मा, प्रमोद कुमार वर्मा, अमरनाथ, राजाराम विद्यार्थी, बाबूलाल, ललित कुमार, सेवानिवृत्त सूबेदार हरिप्रसाद शास्त्री, शुभम चौधरी, अरुण कुमार आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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