नया सबेरा नेटवर्क
दूरी बनाकर रहना जरूरी हो गया है,
वायरस का पर कतरना जरूरी हो गया है।
वीरान करता जा रहा है ये दुनिया को,
अब इसका सर कुचलना जरूरी हो गया है।
इस सन्नाटे के जंगल में कोई कब तक जिए,
फूल के जैसा खिलना जरूरी हो गया है।
बहुत दिन घर रह जाओ,अच्छा नहीं लगता,
कोरोना फतह करना अब जरूरी हो गया है।
बारिश के बिस्तर पर सोने को कह रहे बच्चे,
महामारी से निबटना जरूरी हो गया है।
लम्हा -लम्हा गुजर रहा बेशकीमती समय,
पटरी पर लौटे दुनिया जरूरी हो गया है।
तंग हो चुके हैं हम वायरस की लुकाछिपी से,
इसे ठिकाने लगाना अब जरूरी हो गया है।
काबा-काशी के दर्शन के लिए तरस रहे नयन,
कोरोना को दफनाना जरूरी हो गया है।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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