नया सबेरा नेटवर्क
करते वो मोहब्बत पर भूल जाते हैं,
प्यास बढ़ाकर बुझाना भूल जाते हैं।
दगा देकर भी वो मुस्कुराते रहते हैं,
हम वो रंज -ओ - गम भूल जाते हैं।
आजकल इस चमचमाती दुनिया में,
हम कुदरत की सौगात भूल जाते हैं।
बेखबर हैं एटम-बम की ताकत से,
ताव में आकर औकात भूल जाते हैं।
जब से दिया कोरोना वायरस दस्तक,
जिन्दे हैं पर सांस लेना भूल जाते हैं।
आता है जब चौबीसों घंटे पानी,
नल की टोंटी बंद करना भूल जाते हैं।
दिखावे में डालते हैं तन पे कम कपड़े,
देश की अच्छी रवायत भूल जाते हैं।
बेखबर सोती है झील की पलंग पे,
बिस्तर पे हम मीठी नींद भूल जाते हैं।
पी लेते हैं जाम उसकी आँखों से जब,
और कहीं दिल बहलाना भूल जाते हैं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई
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