नया सबेरा नेटवर्क
हमारी क्या ख़ता, पता नहीं,
आगे क्या होगा,कुछ पता नहीं।
बरस रही है मौत इस कदर यहाँ,
लगता है धरती पे खुदा नहीं।
देखो! बह रही लाश नदी में,
कांधा होगा नसीब, पता नहीं।
डॉक्टर और नर्स की भारी कमी,
कब सजेगा हॉस्पिटल,पता नहीं।
छाई है उदासी अखिल विश्व में,
कब मुस्कायेगी दुनिया,पता नहीं।
ख्वाब इस वक़्त सबके बिखरे हुए,
सजेंगे ख्वाब कब, वो पता नहीं।
सूख गई सुकून की सारी फिज़ा,
बनेगा आदमी, इंसान पता नहीं।
सांसों में घुलती थी उनकी सांसें,
घुलेगी फिर सांसें, कुछ पता नहीं।
बहार का काफिला लौटेगा कब,
इन उदास हवाओं को पता नहीं।
धड़कने को धड़क रही मेरी सांसें,
वो कब बुला लेगा हमें , पता नहीं।
सलामत रहे हमारी ये दुनिया,
कब आएगी चौबारे में, पता नहीं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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