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यह समय प्रकृति से अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगने का समय | #NayaSaberaNetwork

यह समय प्रकृति से अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगने का समय | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
आज कोरोना काल में ऑक्सीजन को लेकर फैले हाहाकार में हमें कुछ सवालों का जवाब ढूंढ लेना जरूरी है कि क्या अब भी हम वृक्षों, वनस्पतियों और नदियों के महत्व को समझेंगे। क्या हम यह स्वीकार करेंगे कि वृक्ष जो हमारे आसपास ऑक्सीजन के प्रमुख स्रोत थे हमने कभी उनकी कद्र नहीं की। अंधाधुंध वृक्षों की कटाई होती रही। वन क्षेत्र घटता गया पर हमारे भीतर कभी संवेदना नहीं जगी। जंगलों को काट काट कर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए पर इसे रोकने की दिशा में हमने कोई प्रयत्न नहीं किया। हमने नए वृक्ष लगाने में भी दिलचस्पी नहीं ली।
जबकि हम जानते थे कि प्रकृति ने मनुष्य के जीवन के लिए हर जरूरी साधन पर्याप्त मात्रा में दिए हैं। प्रकृति ने नदियां दीं, जलाशय दिए पर हमने तो अपने स्वार्थ के लिए इनका दोहन ही किया। कल कारखानों, उद्योगों और नालों की इतनी गंदगी इनमें डाली कि भूगर्भ जल तक प्रदूषित हो गया।
प्रकृति ने हमें साफ और स्वच्छ पर्यावरण दिया जिसे हमने विकास के नाम पर अपने संसाधनों से इस कदर प्रदूषित किया कि खुद हमारे लिए ही सांस लेना दूभर होने लगा। हमने भौतिक प्रगति की अंधी दौड़ में हासिल तो बहुत कुछ किया पर प्रकृति के साथ जीना नहीं सीख पाये। 
जीव जंतु और पक्षी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए वे प्रकृति के हिसाब से रहते हैं। मनुष्य प्रकृति को जीतने की कोशिश में सब कुछ हार रहा है।
प्रगति के नाम पर अपने प्रभुत्व के बदौलत प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना कितना भारी पड़ सकता है इसे आज पूरी दुनिया देख रही है। प्रकृति एक सीमा तक ही अत्याचार बर्दास्त करती है। उस सीमा के अतिक्रमण के बाद किसी न किसी रूप में प्रतिकार अवश्य करती है। हमारा स्वास्थ्य प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार का परिणाम है और कोरोना त्रासदी को प्रकृति की ओर से एक चेतावनी ही समझा जाना चाहिए। यह मानव समाज के लिए चेतने का एक अवसर है। 
आइए हम सब मिलकर प्रकृति से अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगें और संकल्प लें कि हम अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव लाएंगे। पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए हर संभव उपाय करेंगे। प्रकृति द्वारा दी गई नेमतों को बचाने और संजोने का प्रयत्न करेंगे। अधिक से अधिक वृक्ष लगाएंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे। प्राकृतिक संपदाओं के साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे। उनका सम्मान करेंगे। प्रकृति को फिर कभी क्रुद्ध नहीं होने देंगे।
डॉ. स्वयंभू शलभ

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