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बेकाबू महंगाईः कमाई धेला भर नहीं, खर्च रुपैया | #NayaSaberaNetwork

बेकाबू महंगाईः कमाई धेला भर नहीं, खर्च रुपैया | #NayaSaberaNetwork



नया सबेरा नेटवर्क
सुरेश गांधी
कोरोना काल का दूसरे साल में किसान से लेकर मध्यम वर्गीय परिवार हो आम जनमानस, सबका हाल-बेहाल है। पिछले साल की तुलना में 20 से 30 फीसदी तक बढ़ गई है महंगाई। जो रिफाइंड 120 था, वह 200 किलो यानी 80 महंगा हो गया है जबकि सरसों का तेल 117 की जगह 150 किलो यानी 68 महंगा हो गया है।
कोरोना काल का दूसरा साल आम लोगों के लिए आफत बन गयी है। जहां आम लोगों की कमाई लगातार घट रही है, वहीं खर्च है जो कम ही नहीं हो रही है। कभी दवाई व जांच के नाम पर तो कभी खाद्य पदार्थों के बढ़ी कीमतों के चलते। क्रूड पाम तेल रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। सोयाबीन, सोया तेल की कीमतें नई ऊंचाई पर आ गई हैं। एक साल में इनके दाम 30 से 60 प्रतिशत तक बढ़े हैं जिसकी वजह से खाने का तेल इतना महंगा हुआ है। हाल यह है कि पिछले साल के मई तक जो चना का दाल 62 किलो था, वह अब 78 किलो बिक रहा है। यानी 16 महंगा हो गया है। मूंग का दाल 110 किलो था, अब 130 किलो हो गया है। यानी 20 किलो महंगा हो गया। उड़द दाल 95 किलो था, इस समय 110 किलो बिक रहा है। यानी 15 महंगा हो गया है। मैदा 26 से बढ़कर 28 किलो तो चूड़ा 66 किलो की जगह 70 किलो बिक रहा है। गुड़ 44 की जगह 50 किलो बिक रहा है। लाल बादाम 110 किलो से बढ़कर 158 और काबुली चना 68 किलो की जगह 88 किलो बिक रहा है। सबसे ज्यादा असर रिफाइंड व सरसों तेल पर पड़ा है। यानी जो रिफाइंड 120 किलो था, वह 200 किलो बिक रहा है। यानी 80 महंगा हो गया है जबकि सरसो का तेल 117 किलो की जगह 150 हो गया है। 68 महंगा हो गया है। सर्फ एक्सल 108 था लेकिन अब 110 में बिक रहा है।
आटा 25 किलो का 510 की जगह 570 में बिक रहा है जबकि चावल 25 किलो का 750 की जगह 780 किलो बिक रहा है। 60 किलो आटा और 30 किलो चावल महंगा हो गया है। या यूं कहे पिछले साल की तुलना में इस साल 20 से 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। हालांकि राहत की बात है कि सब्जी के दाम घटे है। सब्जी में आलू 12 से 20 किलो बिक रहा है। प्याज 20 से 22, गोभी 25 से 30, पत्ता गोभी 10 से 12, नेनुआ 20 से 30, भ्ंिाडी 20 से 30, परवल 40 से 60, शिमला मिर्च 40 से 60 किलो बिक रहा है। एलपीजी कंपनी के फैसले के बाद अब 14.2 किलोग्राम वाले रसोई गैस की कीमत 719 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई है। मौजूदा वक्त में देश में 28.9 करोड़ एलपीजी उपभोक्ता हैं जिन पर इन बढ़ी कीमतों का सीधा असर पड़ेगा।
हालांकि 2021 के पहले महीने यानी जनवरी में एलपीजी की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई थी लेकिन दिसंबर में दो बार कीमतों में इजाफा हुआ था जिस वजह से एलपीजी के दाम दिल्ली में 100 रुपये तक बढ़ गए थे। बता दें कि कोरोना काल में एक बड़ा तबका है जिनकी नौकरियां चली गई है। कई लोग ऐसे हैं जिनको नियमित काम नहीं मिल रहा है। कुछ का इंक्रीमेंट बंद है। उन पर कई तरह के आर्थिक दबाव है। किसी को बिजली का बिल भरना पड़ रहा है तो किसी को खाने के लाले पड़ गए है। मतलब साफ है कि महामारी का प्रभाव का जीवन के हर पहलू पड़ा है।
मजदूरों के सामने रोजी रोजगार का संकट तो है ही। सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता भी बंद है। वेतन वृद्धि की तो बात ही छोड़ दीजिए। निजी सेक्टर में काम करने वालों का भी यही हाल है। हर सेक्टर के लोगों का मेडिकल का खर्च बढ़ गया है। ऊपर से महंगाई की मार अलग से झेलनी पड़ रही है। दलहन और तिलहन की कीमत में 1 साल में जबरदस्त उछाल आया है। इसका फायदा खेत में काम करने वाले किसानों को नहीं मिल रहा है। किसान के उत्पाद की कीमत नहीं मिल रही है। किसानों का शान 17 से 18 बिक रहा है। इसका प्रोसेस किया हुआ चावल 40 किलो खरीदना पड़ रहा है। यही हाल दलहन-तिलहन पैदा करने वाले किसानों का भी है। कोविड-19 सब्जियों का बाजार नहीं मिल रहा है। किसानों को उत्पात खेतों में ही छोड़ना पड़ रहा है। इस सीजन में जो फूलगोभी 40 से 50 रुपए किलो बिकता था। वह 20 से 30 के बीच बेचना पड़ रहा है। टमाटर और खीरा तो किसानों के नहीं बिकने पर बाजार में छोड़कर चले जा रहे हैं। इसको लेकर आम लोगों की मानसिक परेशानी दूर होने के बजाय बढ़ती जा रही है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अनिश्चितता बढ़ी है। मानसिक परेशानी बढ़ी है। नकारात्मक विचार आ रहे हैं। भविष्य को लेकर लोग चिंतित है। इसका दूरगामी असर होगा। बाजार बंद है। कमाई ठप है। इसका नकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे में आशावादी होने की जरूरत है। यह सोचना चाहिए कि सबकी जिम्मेदारी बढ़ी है और सरकारी सेवकों को छोड़कर हर सेक्टर ज्यादा प्रभावित है। परिवार का खर्च 20 से 40 तक बढ़ गया है। पिछले साल भर से मेडिकल का खर्च बढ़ है। मेडिकल खर्च और महंगाई से लोगों की आर्थिक परेशानी बढ़ी है। लोगों का कहना है कि परिवार के मासिक खर्च में 20 से 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।


क्यों महंगा हो रहा है खाने का तेल?
खाने के तेल की ग्लोबल सप्लाई घटी है, बाय फ्यूल के लिए क्रूड पाम तेल की डिमांड में तेजी आई है, इधर चीन में भी सोयाबीन की डिमांड लगातार बढ़ रही है। ब्राजील, अर्जेंटीना में खराब मौसम की वजह से उत्पादन पर असर पड़ा है और घरेलू बाजार में भी खपत में बढ़ोतरी देखने को मिली है। फेस्टिव सीजन में खाने के तेल में डिमांड और बढ़ेगी जिससे कीमतें और ऊपर जा सकती हैं।


दवा की कीमत से मरीज परेशान
दवा की कीमत से मरीज परेशान है। कोरोना के बाद दवाओं की कीमतें 40 फीसदी तक बढ़ी है। कोरोना महामारी के बाद सामान्य बीमारी जैसे एलर्जी, गैस्ट्रिक, बुखार, खांसी की दवा एंटीबायोटिक की कीमतों में 40 फीसदी तक की वृद्धि हो गई है। मौसम में बदलाव होने पर कई लोग सामान्य बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। डाक्टरों के परामर्श के बाद दवा खरीदते वक्त मरीजों के पहले से ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है।

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