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कोरोना महामारी के दौर में एस्मा एक्ट, जनप्रतिनिधियों के पीएचसी गोद लेने जैसे कारगर उपाय पर विचार करना जरूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत में वर्तमान कोरोना महामारी से उपजी स्थिति को काबू में लाने के लिए हर राज्य ने तेजी से रणनीतिक रोडमैप तैयार कर उसका क्रियान्वयन करना शुरू कर दिया है। जिसका रिजल्ट हमें कुछ दिनों से दिखाई दे रहा है। कोरोना महामारी से तीव्र पीड़ित राज्यों में तेजी से महामारी से पीड़ित संक्रमितों का ग्राफ गिर रहा है और संक्रमितों का आंकड़ा पूरे देश स्तर पर भी कुछ दिनों से करीब करीब आधे के लगभग आना शुरू हो चुका है। जो हमारी रणनीतिक रोडमैप बनाने और उसका क्रियान्वयन करने के अच्छे संकेत मिल रहे हैं। इस बीच अन्य समस्याओं जैसे टाऊते तूफान और यास तूफान से निपटने के लिए माननीय प्रधानमंत्री महोदय दिनांक 28 मई 2021 को पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्यों का दौरा कर बैठक कर समीक्षा की तथा वर्तमान में जो तीसरी लहर की चर्चा चल रही है उसका संज्ञान लेकर अनेक राज्य अपनी अपनी रणनीतियां बना रहे हैं जिसमें मेडिकल इक्विपमेंट्स, मानव संसाधन, अस्पतालों की उपलब्धता, तीसरी लहर से लड़ने के उपाय, इत्यादि में गंभीरता से भिड़ गए हैं। उधर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी अपने कोरोना प्रतिबंधों को 30 जून तक बढ़ा दिया है जिसके निर्देश 27 मई 2021 को जारी कर दिए गए। उधर 27 मई 2021 को ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पत्रकार कल्याण योजना के तहत कोविड-19 से जान गंवाने वाले पत्रकारों के परिवारों को सहायता प्रदान करने के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है। इसके तहत पत्रकारों के कुल 67 परिवारों को 5-5 लाख रुपये की आर्थिक मदद केंद्र सरकार ने मंजूर की है.....। बात अगर हम यूपी राज्य की करें तो मुख्यमंत्री महोदय ने दिनांक 27 मई 2021 को राज्य में एसेंशियल सर्विसेज मैनेजमेंट एक्ट 1968 ( एस्मा) 6 माह के लिए लागू करने की घोषणा की गई है।तथा प्रदेश के सभी जिलों में 100 बेड का पोस्ट कोविड वार्ड शुरू करने का निर्देश दिया गया है तथा जनप्रतिनिधियों से कहा कि वे एक-एक सीएचसी/पीएचसी गोद लें और वहां नियमित रूप से विजिट करें।एवं समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के सभी जिलो में 1 जून से 18 से 44 वर्ष आयु के लोगों को कोविड-19 का टीका लगाया जाएगा जो 12 वर्ष से कम आयुके बच्चों के अभिभावकों न्यायिक अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों तथा मीडिया के प्रतिनिधियों को टीका लगाने के लिए अलग से काउंटर खोले जायेंगे। अधिकारियों को निर्देश दिया कि टीकाकरण, सैनिटाइजेशन तथा फागिंग की सूचना जनप्रतिनिधियों को भी उपलब्ध कराएं जिससे वे इसका सत्यापन कर सकें। उन्होंने यह भी निर्देश दिया है कि प्रत्येक जिले में स्वच्छता, सैनिटाइजेशन एवं फागिंग, निगरानी समिति द्वारा स्क्रीनिंग एवं दवा किट वितरण, कोविड कमांड एवं कंट्रोल सेंटर द्वारा फील्ड में किए जा रहे कार्य का सत्यापन तथा कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए अस्पतालों की तैयारी को प्राथमिकता दें। बरसात को देखते हुए इंसेफेलाइटिस डेंगू, चिकुनगुनियां आदि बीमारियों से सुरक्षा के लिए भी समुचित प्रबन्ध किए जाएं। इसके लिए हर गांव एवं वार्ड में दिन में सैनिटाइजेशन तथा रात में फागिंग किया जाय। मच्छरों के लार्वा को खत्म करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाए। उन्होंने ग्रामीणों को खुले में शौच न करने तथा शौचालय का उपयोग करने को लेकर जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया और कहा कोरोना की दूसरी लहर को रोकने में सभी ने अच्छा कार्य किया है, लेकिन तब भी हमें सतर्क रहना होगा....। बात अगर हम एस्मा की करें तो यह एक आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून 1968 (एस्मा) हड़ताल को रोकने के लिये लगाया जाता है। विदित हो कि एस्मा लागू करने से पहले इससे प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को किसी समाचार पत्र या अन्य दूसरे माध्यमसे सूचित किया जाता है। एस्मा अधिकतम छह महीने के लिये लगाया जा सकता है और इसके लागू होने के बाद अगर कोई कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध और दण्डनीय है। वैसे तो एस्मा एक केंद्रीय कानून है जिसे 1968 में लागू किया गया था इसमें कुल 9 धाराएं हैं और हर राज्य केंद्रीय कानून को लागू कर सकता है, लेकिन राज्य सरकारें इस कानून को लागू करने के लिये स्वतंत्र हैं। उल्लेखनीय है कि थोड़े बहुत परिवर्तन कर कई राज्य सरकारों ने स्वयं का एस्मा कानून भी बना लिया है और अत्यावश्यक सेवाओं की सूची भी अपने अनुसार बनाई है। जैसे राजस्थान एस्मा एक्ट 1970 आंध्र प्रदेश एस्मा एक्ट 1971 केरल एस्मा एक्ट 1993 और कर्नाटक एस्मा एक्ट 1994.....। बात अगर हम वर्तमान परिस्थितियों और तीसरी लहर के अंदेशे की करें तो उसे देखते हुए पीड़ित राज्यों नेभी एस्मा लगाने पर विचार किया जाना चाहिए....। बात अगर आम जनप्रतिनिधियों के पीएचसी/सीएचसी गोद लेने की करें तो यह भी यूपी मॉडल बहुत अच्छा है। हर पीड़ित राज्य में ऐसे अनेक जनप्रतिनिधि हैं उन पर इस प्रकार की जवाबदारी देने से जनजागृति उत्पन्न होगी और जनप्रतिनिधियों पर दबाव बढ़ेगा और जनता को भी पता चलेगा कि किस जनप्रतिनिधि में कितनी काबिलियत है। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर हम विश्लेषण करें तो हमें महसूस होगा कि वर्तमान उपरोक्त यूपी मॉडल को सभी पीड़ित राज्यों ने अपनी रणनीतिक रोडमैप में शामिल करने पर विचार किया जाना उचित रहेगा।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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