नया सबेरा नेटवर्क
================
शक्ति के मिलने से होता अभिमान है
नष्ट हो जाता जो बुद्धि बल ज्ञान है
शक्ति का दर्प रहता नहीं उम्र भर
नाश होना हीं तो इसका वरदान है।
धर्म की हानि जब जब हुई है यहाँ
प्रभु हुए है प्रकट धर्म रक्षा सदा
शक्ति तो बस बिचारी बनी रह गई
धर्म संस्कृति की रक्षा हुई सर्वदा।
जीव कितना अधम जाति भी निम्न हो
आचरण से सदा मिलता सम्मान है
कर्म की पूजा होती यहां है सदा
सृष्टि पर्यंत तक होता गुणगान है।
एक जटायू अधम गीध पक्षी भी था
जिसकी करनी से यमराज बेबस हुए
पंख था कट गया मृत्यु आकर खड़ी
बिन लिए प्राण यमराज वापस हुए।
प्राण की याचना भी नहीं खग किया
अपनी पीड़ा भुलाकर जटायू कहा
प्रभु को सन्देश सिय का सुनाए बिना
प्राण दे सकता अपना नहीं मै यहाँ।
यम से ब्रह्मा कहे लौट वापस चलो
बस तुम्हारा मेरा चलने वाला नहीं
आयु तो इसकी प्रभु की जटाओं में है
प्राण इसका हरण कर भी सकते नहीं।
बाणो की शैय्या पर भीष्म भी थे पड़े
प्राण लेने स्वयं कृष्ण हीं आ गये
भीष्म के सामने वे खड़े रह गये
बैठने तक को स्थान भी नहिं दिए।
भीष्म ने कृष्ण से बस यही है कहा
हे मुरारी अभी तुम प्रतीक्षा करो
सूर्य दक्षिणअयन प्राण दूंगा नहीं
मुझको वरदान यह अपनी इच्छा मरो।
बस सदाचार के बल का सम्बल रहा
ब्रह्मा की सृष्टि भी तब यहाँ रूक गई
देव हर्षित हुए देखकर आचरण
सृष्टि भी कर नमन और स्वयं झुक गई।
मद अहंकार अज्ञान है शक्ति पर
प्रभु की लीला है जो पड़ रही मार है
भ्रम है कितना बड़ा सत्य है पर यही
सृष्टि के सामने शक्ति लाचार है।
रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
from Naya Sabera | नया सबेरा - No.1 Hindi News Portal Of Jaunpur (U.P.) https://ift.tt/3w1yCFk
0 Comments