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मैं गमछा हूँ....!
गरीबों की पगड़ी,
अमीरों का ताज...
तन ढकने का....
जानता सभी मैं राज...
गले का मफ़लर और
गुलबंद..... मैं ही हूं...
मुझे अपने पर है नाज़
मैं गमछा हूँ...!
मेरा छोटा रूप
रुमाल का,
बड़ा हुआ तो लुंगी और,
ज्यादा बड़ा हुआ तो धोती,
रात का चादर भी...!
मैं ही हूँ....
मैं गमछा हूँ....!
माँ का दुलार देने वाला,
गर्मी का बेना,पंखा...
रूप बड़ा लेकर माँ की साड़ी,
बहन का दुपट्टा,
गुड्डे-गुड़ियों के खेल में
गुड्डे का साज और
गुड़ियों का घूँघट....
मैं ही हूँ...
मैं गमछा हूँ......!
ऋषि मुनियों की थाती...
मुझ में ही है सुरक्षित,
दोहरी परत में मैं उनका
बिछौना भी हूँ....
रूप और रंग से और..
प्रयोग के ढंग से
मेरी चर्चा हर जगह.....
खासकर राजनीति में
काला, हरा, सफेद, भगवा
नीला, पीला और लाल... सब में
मेरी अपनी पहचान है....!
रंगे रूप में
कहीं वीरता, कहीं शांति,
कहीं खतरा तो कहीं विरोध
जताता हुआ मैं ही हूँ
मैं गमछा हूँ....!
घोड़े पर सवार जवानों के..
कमर कसने वाला,
राहगीरों के बीच...
लोटा और लंगोटा के साथ
अकेले मैं ही हूँ...
मैं गमछा हूँ....!
बचपन में लईया चना गठियाने में,
गंगा नहाने और फिर
देह सुखाने में....
कथा-पूजा में मियां-बीवी के बीच
नाउन की गांठ में भी...
मैं ही हूँ....
मैं गमछा हूँ....!
किसान के हल के साथ
बीज ढोने में,
उसके माथे का पसीना पोछने में,
खांड का रस छानने में,
थक जाने पर उसके सिरहाने में
तकिया के रूप में मैं ही हूँ....
मैं गमछा हूँ....!
तसल्ली से.......
विचार करो प्यारे....
क्या यह सही नहीं है.....??
संसार में आने पर,
जिसमें लपेटे गए....और....!
संसार से जाने पर
जिसमें लपेटे जाओगे...!
वह भी मैं ही हूँ,
मैं ही हूँ...…
मैं गमछा हूँ....।
मैं गमछा हूँ....।
जितेंद्र दुबे
पुलिस उपाधीक्षक ,जौनपुर
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