नया सबेरा नेटवर्क
करके सेवा हम लौट चले ,
जब याद आए,तो मत रोना।
तन -मन से किया है काम सदा,
उम्मीद का फिर सपना बोना।
बागों में खिले हैं फूल बहुत,
हमसे, तुमसे कुछ कहते हैं।
महफूज रहे ये सारा चमन,
वो जोश सभी में भरते हैं।
रण की भेरी जब बज जाए,
फिर जान हथेली पे रखना।
करके सेवा हम लौट चले,
जब याद आए तो मत रोना।
सीना ताने उस सरहद पे,
हम हर मौसम में रहते थे।
चाहे गोली चले या बम फूटे,
हम मिलके बदला लेते थे।
जम जाए भले चाहे खून वहाँ,
बंदूक निशाने पे रखना ।
करके सेवा हम लौट चले,
जब याद आए तो मत रोना।
रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार), मुंबई
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