नया सबेरा नेटवर्क
गाँव के कच्चे घरों का....
एक सामान्य सा,
वास्तु विन्यास होता है....
चार-पांच कमरे,आँगन,
दो-एक बरामदे और ओसार,
आगे बड़ा सा दुआर...
एक तरफ गौशाला...
सब कच्ची मिट्टी का बना एवं
खपड़ैल के छाजन वाला....
कमरों का भी....
अपना-अपना नाम करण था...
दुछतिया,भुसौला घर,रसोईघर
और नयकी बहुरिया वाला घर...
पर........!
इन सब में एक रचना,
अमूमन मंदिरनुमा....!
कॉमन पाई जाती थी
जिसे "ताखा" या "गौखा"
कहा जाता था....
दुआरे वाले ताखे.....
अक्सर दरवाजे के दोनों ओर
शुभ-लाभ का संकेत करते...
ओसारे वाले पहले ताखे पर,
दादा-दादी के चश्मे और....
रामायण और सोरठी-बृजभान....
दूसरे ताखे पर.....
बताशे का डिब्बा और
लोटे में भरा पानी....
आँगन का ताखा....
तेल की कटोरी, उबटन और
कजरौटा के लिए था...
जो बुरी नजरों से.....
लाल को बचाता था.....
चुल्हानी के पास वाला ताखा
माचिस,ढिबरी और
बोतल भर मिट्टी के तेल के लिए...
इसी बरामदे में बने ताखे पर
बिटिया के गुड्डा-गुड़िया और
खेल-खिलौनो के साथ,
चिप्पी और कंकड़ की,
पांच गोटियां भी रहती थी....
यही उसके सपनों का संसार था...
नई बहुरिया के कमरे का ताखा तो
शीशा,होठलाली,सिंदूर,कंघी, बिंदी और नेलपॉलिश के साथ,...
उसका सिंगारदान था...
भुसौला वाले घर में,
जिसमें अनाज रखे जाते थे,
उसके ताखे के पास गर्मियों में
आम का पाल डालना...
कौन भूल सकता है....
ताखा इस स्थान की पहचान था...
दुछतिया वाले कमरे का ताखा...
घर की मालकिन का होता था
जहाँ कथरी सिलने वाला..
सुई-धागा,बच्चों के गुल्लक और
वही चाबी के गुच्छे के लिए
सुरक्षित स्थान भी था.....जो
लोगों की नज़रों से भी सुरक्षित था
गोशाले के ताखे पर.....
गोदोहन की घी कटोरी, छन्ना और
बछड़े के लिए.....!
बांस की ढरकी रखी जाती थी...
जाहिर है....
ताखे का अपना संसार था....
पर.....अफसोस....!
दुनियावी मायाजाल में,
हम कदम गाँव के,
अपने ही... कच्चे घरों में....
अब कभी रखते नहीं.....
अफसोस इस बात का भी है कि
इन कच्चे घरों में भी अब
ताखे कहीं दिखते नहीं...!
ताखे कहीं दिखते नहीं...!!
जितेंद्र दुबे
पुलिस उप अधीक्षक, जौनपुर
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