नया सबेरा नेटवर्क
पटना। पीने योग्य जल का मुख्य स्रोत भूगर्भ जल है। वर्तमान में इसके अनियोजित उपयोग, औद्योगिकीकरण, प्रदूषण और इन के दुरुपयोग से पूरा विश्व जल संकट की ओर बढ़ रहा है। यहाँ तक कहा जा रहा है कि तीसरा विश्वयुद्ध जल को लेकर ही होगा। इसलिए भूगर्भ जल संरक्षण को लेकर प्रतिवर्ष 10 जून को विश्व भूगर्भ जल दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर संकुल संसाधन केंद्र, मध्य विद्यालय रमना, गुलजारबाग, पटना में छात्र-छात्राओं के बीच वर्ग 7 के भूगोल की पुस्तक हमारी दुनिया के अध्याय 'बिन पानी सब सून' वर्ग 7 के ही विज्ञान विषय के प्रथम पाठ तथा वर्ग 8 के भूगोल के इकाई 1(क) को ध्यान में रखते हुए भूगर्भ जल संरक्षण हेतु ऑनलाइन चर्चा का आयोजन संकुल समन्वयक सूर्य कान्त गुप्ता के द्वारा किया गया। श्री गुप्ता ने बताया कि पृथ्वी का दो तिहाई भाग जल तथा एक तिहाई भाग स्थल है। पृथ्वी के संपूर्ण जल का लगभग 97.5% भाग खारा है। शेष 2.5% भाग मीठा है। मीठे जल का 75% भाग हिमखंड में तथा 24.5% भूजल, 0.06 प्रतिशत भाग वायुमंडल एवं शेष भाग नदी, झील, तालाब, आहर, पोखर, डैम आदि में विद्यमान है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का मात्र 0.3% भाग ही पीने योग्य है। वर्षा जल को संचित कर वापस भूमि में भेजकर भूजल स्तर को रिचार्ज करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सबसे कारगर जरिया है। अभी मानसून आ रहा है। हम लोगों को वर्षा जल के संग्रहण के उपायों को अपनाना बेहद जरूरी है, ताकि भावी पीढ़ी को जल की किल्लतों का सामना नहीं करना पड़े। आज विश्व भूगर्भ जल दिवस के अवसर पर हम संकल्प करें कि नल के इस्तेमाल के बाद उसे टाइट करके बंद कर देंगे, ताकि जल बर्बाद ना हो। इस वर्षा के मौसम में वृक्षारोपण करेंगे। मुंह, हाथ, पैर, कपड़ा इत्यादि धोते, ब्रश करते, स्नान करते समय जल बर्बाद नहीं करेंगे और ना किसी को करने देंगे। लोगों को भूगर्भीय जल बचाने के लिए जागरूक करेंगे। लोगों से बर्षा जल संचयन हेतु घर में रिचार्ज पिट, रिचार्ज ट्रेंच, रिचार्ज ट्रेंच-सह-बोरवेल इत्यादि का निर्माण करने हेतु जागरूक करेंगे। तालाब, पोखर, आहर, कुऑ, छोटे-छोटे चेक डैम के संरक्षण हेतु भी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करेंगे तथा सरकार से भी मांग करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने में तकनीकी सहयोग पुष्पांजलि सिन्हा एवं गौतम कुमार ने किया।
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