नया सबेरा नेटवर्क
चोरी -चोरी दिल तेरा चुरायेंगे,
रफ्ता -रफ़्ता पास तेरे आयेंगे।
दिन गुजरेँगे सारी मस्ती में,
हम जमाने को भूल जायेंगे।
बुझेगी प्यास हम दीवानों की,
जामभरी आँख में डूब जायेंगे।
सुलग रही आग बिना पानी की,
तेरी दरिया में उसे बुझायेंगे।
घुट रहा है दम दरो -दीवारों में,
जुहू - बीच जाके लौट आयेंगे।
कैसे जाओगे लॉकडाउन में,
आसमां में आशियाँ बसायेंगे।
तन्हाइयों से कोई कितना खेले,
प्यार का गुल नया खिलायेंगे।
हया भरी है मेरी इन आँखों में,
मंद -मंद मुस्कान वो चुरायेंगे।
रात -रात नींद मुझे नहीं आती,
हम ख़्वाबों में रोज सुलायेंगे।
अब आ रही है जुदाई की बेला,
दो जिस्म, एक जां हो जायेंगे।
चोरी -चोरी दिल तेरा चुरायेंगे,
रफ़्ता -रफ़्ता पास तेरे आयेंगे।
दिन गुजरेंगे सारी मस्ती में,
हम जमाने को भूल जायेंगे।
रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार), मुंबई
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