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माफ़िया का बदलता स्वरूप 23 | #NayaSaberaNetwork

 -बड़े भू-माफ़िया और अपने क्षेत्रों के लतमरुआ पहलवान शासन-प्रशासन से जारी नोटिस और कम्पाउंड फीस को लेकर हैं गफ़लत में।
-रिटायर होने के बाद एक दशक से ज़मीन का बैंक बना करिश्माई लेखपाल क्रेता और विक्रेता दोनों को फंसाकर पैसा खून की तरह निचोड़ लेता है। काली कमाई वालों को उतारता रहा अपने शीशे में। "कैलाशनाथ सिंह"/कमर हसनैन दीपू।
नया सबेरा नेटवर्क
जौनपुर। पुरानी कहावत है कि देवी लक्ष्मी की सवारी है उल्लू। यह यूं ही नहीं बनी है। पुरखों ने इसे प्रायोगिक तौर पर देखने के बाद मैदान में उतारा है। बानगी देखिए, इसका लाभ सदर तहसील में अपनी तैनाती के दौरान से लेने वाले करिश्माई लेखपाल ने जो सिलसिला शुरू किया वह रिटायर होने के बाद भी कायम है। दरअसल भुक्तभोगी उसे ज़मीन का कीड़ा कहते हैं लेकिन है यह ज़मीन रूपी बरगद का दीमक। 
वर्ष 1956 में बनी प्रदेश स्तरीय महायोजना के भूमिगत बस्ते में जाने के बाद 1980 के दशक में ठाकुर कमला प्रसाद सिंह के सांसद रहते वाजिदपुर में झील में पिकनिक स्पॉट का मसौदा बना पर अधूरा रह गया। अब सुप्रीमकोर्ट की रूलिंग से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जिलाधिकारियों, सचिव आदि के जरिये पड़ताल कर राजस्व जुटाने का काम शुरू किया तो अकेले जौनपुर में सैकड़ों एकड़ जमीन मिली और उन पर काबिज लोगों को नोटिस तामील होने लगी। दिलचस्प पहलू देखिए, इन ज़मीनों के कथित किसान जो ज़मीदारों से रुक्का और चुटकी से मालिक बने थे उन्हें तत्कालीन सरकार मुआवजा तो दे दिया था लेकिन धरातल व कागज़ी तौर पर कब्ज़ा नहीं लिया। हालांकि कालांतर में झील, नाला आदि की ज़मीन की नवैयत बदलकर ग्रीनलैंड, पार्क, खुला क्षेत्र के रूप में दर्ज हो गई। अब यह सरकार की ज़मीन उसी तरह हुई जैसे गांवों में ग्राम समाज की होती है। यदि रचनात्मक प्रधान हुआ या कोई गांव का ही सक्रिय हुआ तो आज भी यही सरकारी मशीनरी सक्रिय होकर बने भवन तक गिरा देती है। यहां ज़मीनों की तिजारत का ठेकेदार वही करिश्माई लेखपाल बन गया। अभी हाल के वर्षों में उसीने एक सम्भ्रांत किंतु धनाढ्य को सई, गोमती का पठार बेच दिया। इसने ही कलेक्ट्रेट कैम्पस की सड़क एक के नाम कर दी। यह ज़मीन को शतरंज सरीखे खेलता रहा है। 
खैर, झील का दिलचस्प पहलू देखिए। उन कथित किसानों जिनके नाम ज़मीन थी लेकिन वह मुआवजा सरकार से पा चुके थे, उन्हें इसी लेखपाल ने रुपयों का लालच देकर औने पौने दाम पर ज़मीन का ओलम्पिक आयोजित कर दिया जिसका खेल हाल के दिनों तक जारी रहा। आज़ भी काली कमाई करने वाले भू-माफ़िया इसी गफ़लत में हैं कि उन्होंने ज़मीन बैनामा ली है। ऐसे जिलाधिकारी आते जाते रहते हैं। अबतक कीमती पान से काम सरकता आया लेकिन वर्तमान डीएम सादा पान भी नहीं खाते। 1600 लोगों को दी जाने वाली नोटिस एवं सभी कार्रवाई का लेखाजोखा  प्रदेश शासन को निरन्तर भेजा जा रहा है। फिर भी गफ़लत में जी रहे बड़े भू-माफ़िया छोटों से वसूली ज़मीन बचाने के नाम पर कर रहे। ये सब सरकारी जमीन पर विभिन्न व्यवसायों के जरिये आमजन का रक्त जोंक सरीखे निचोड़ रहे। हालांकि ये एनाकोंडा और मगरमच्छ हैं।

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