#JaunpurLive : मुंशी प्रेमचंद!

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करें नमन साहित्य-सम्राट को,
कितनी अच्छी कफन कहानी।
पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा,
कौन  भूलेगा, दिल  की  रानी।

गबन,गोदान,ठाकुर का कुँआ,
कितनी   सबको    भाती   है।
बुधिया, घीसू, माधव की रात,
आज  भी  हमको रुलाती  है।

बूढ़ी काकी,  वो  गुल्ली-डंडा,
कैसे  भूलें  हम पूस की  रात।
दो   बैलों   की  कथा, तगादा,
नशा,  शांति,  मंत्र,  वज्रपात।

एक से  बढ़कर  एक  कहानी,
वो  भरी   हुई   हैं   भावों  से।
आजादी की अलख जगाकर,
तब  हुंकार उठी उन गाँवों से।

धन्य कोख  है, धन्य वो माता,
और  धन्य  वो   लमहीं  गाँव।
बादशाह  बेताज  कलम  का,
चली  रही साहित्य  की  नाव।

पंच  परमेश्वर  अब  रहे  नहीं,
नित्य  बढ़  रहे  गाँव में केस।
सुलझे  झगड़े भी  उलझाकर,
हिला  रहे   हैं   अपना   देश।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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