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#JaunpurLive : मधुशाला!

#JaunpurLive : मधुशाला!


हो गई  सुबह से  शाम, क्यों न चलते मधुशाला,
प्यालों  में नपी साँस, क्यों न चलते  मधुशाला।
आगे-पीछे  थिरक रही हैं  कितनी  साकीबाला,
बुझती नहीं है प्यास, क्यों न  चलते  मधुशाला।
धन  कुबेर के कितने  छौने आए  और चले गए,
राम-नाम का धन लूटने क्यों न चलते मधुशाला।
लोगों  के मन  के अंदर  कटुता  कितनी है भरी,
मन का मद मिटाने तू ,क्यों न चलते  मधुशाला।
लूट रहे  निशि - दिन  दौलत  उन  सूखे आँसू से,
मार पड़े न डंडे की वो,क्यों न चलते मधुशाला।
मनमाना  चलकर   पियो  कबीरदास  की  वाणी,
अमृतरस से न हों वंचित,क्यों न चलते मधुशाला।
आज  वक़्त है  साथ में अपने  कल किसने देखा,
सुरा-सुंदरी किस कामके,क्यों न चलते मधुशाला।
पंडित,ज्ञानी,मुल्ला,पादरी सब खोज रहे  उसको,
ऋषिके जैसे ध्यानलगाने क्यों न चलते मधुशाला।
मधुशाला    ऐसी    है   यारों    उसमें    बैठा   रब,
जन्मजन्म कीप्यास बुझे क्यों न चलते मधुशाला।
भाँति-भाँति के पीने वाले,भाँति-भाँति का प्याला,
छोड़-छाड़ अंगूरी- तन, क्यों न चलते  मधुशाला।
तड़क- भड़क  की दुनिया  में देखो  खो न जाना,
अंतर्मन  की प्यास बुझे ,क्यों न चलते मधुशाला।


 

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