नया सबेरा नेटवर्क
मुंबई: भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा मुंबई महानगरपालिका के पूर्व उपमहापौर बाबूभाई भवानजी ने कहा है कि उपनगरीय लोकल ट्रेन सेवा पूरी क्षमता से जब तक आम नागरिकों के लिए शुरू नहीं की जातीं, तब तक कारोबार एवं रोजी-रोजगार की गतिविधियां पटरी पर आ पाना संभव नहीं है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तथा मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त इकबाल सिंह चहल को लिखे पत्र में उन्होंने, उन्हें जमीनी हकीकत से अवगत कराते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं। भवानजी ने कहा है कि सप्ताह में चार दिन सोमवार से गुरूवार तक सभी दुकानें, निजी कार्यालय, उद्योगों, कल-कारखानों को पूरी क्षमता तथा पूरे समय के साथ शुरू रखा जाय, जबकि शुक्रवार, शनिवार एवं रविवार को अत्यावश्यक सेवाओं की दुकानों तथा अस्पतालों को छोड़ अन्य सभी गतिविधियों, व्यवसायों को सख्ती से बंद रखा जाय, तथा अनावश्यकता बाहर घूमने वालों पर भी सख्त दंडात्मक कार्रवाई की जाय। तीन दिन गतिविधियों को ठप्प रखने से लोगों को अपने घरों में क्वारंटीन रहने का मौका मिलने के साथ ही बाजारों, लोकल ट्रेनों तथा सडकों पर बेवजह भीड़ के दबाव से भी मुक्ति मिलेगी। भवानजी ने कहा कि वर्तमान में राज्य सरकार तथा मनपा प्रशासन ने सुबह 7 से शाम 4 बजे तक सप्ताह में पांच दिन दुकानों को खुली रखने की छूट दी है, जो न तो तर्कसंगत है, और न ही सुविधाजनक। राशन, दूध, सब्जी की दुकानों को छोड़कर अन्य सभी व्यावसायिक गतिविधियां दोपहर 12 बजे के बाद ही शुरू होती हैं, लिहाजा दुकानें शुरू करने के चंद घंटे बाद ही उसे बंद करने की तैयारी शुरू करनी पड़ती हैं। ऐसी स्थिति में आखिर व्यापारी, व्यापार कैसे करे। अधिकांश व्यापारी मुंबई में कारोबार करते हैं, लेकिन रहते उपनगरों अथवा मीरा-भायंदर, वसई-विरार, पालघर-डहाणु, नवी मुंबई, पनवेल, कल्याण-डोंबिवली, उल्लासनगर, या फिर अन्य सुदूर क्षेत्रों में। जिनका अधिकांश समय बस यात्रा में ही कट रहा है, और व्यापार नगण्य है। उन्होंने कहा कि ऐसे ही हालात रहे, तो आने वाले दिनों में कोरोना से कम, जबकि भुखमरी से ज्यादा मरने वालों का रिकॉर्ड भी महाराष्ट्र के खाते में ही दर्ज होगा। भवानजी ने कहा कि व्यापार और उद्योग-धंधे ही किसी देश और समाज के विकास की रीढ होते हैं। इनके अस्तित्व और फलने-फूलने के बिना न तो रोजी-रोजगार, और न और कुछ भी संभव है, जिसे बचाए रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार तथा मनपा प्रशासन को गंभीरता से विचार करने और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। इसके बावजूद अगर शासन-प्रशासन नहीं चेता, तो मुंबई के आर्थिक राजधानी का गौरव छिनने में वक्त नहीं लगेगा, क्योंकि पिछले डेढ़ वर्षों में यहां के कारोबारी तबाही के कगार पर पहुंच चुके हैं।
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