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टू चाइल्ड पॉलिसी से ही आबादी नियंत्रण में होगी, दूसरा विकल्प नहीं! | #NayaSaberaNetwork



नया सबेरा नेटवर्क
अनियंत्रित गति से बढ़ रही आबादी देश के विकास को बाधित करने के साथ ही हमारे आम जीवन को भी दिनोंदिन प्रभावित कर रही है। सरकार को अब इस पर टू चाइल्ड पॉलिसी लानी ही चाहिए। गांव-देहात के अलावा शहरों की बढ़ती आबादी चिंता का सबब बनती जा रही है। कई जगह तो मूलभूत अावश्यकताओं के लिए लोग भटकने लगे हैं। सड़कों पर ट्रैफिक जाम आम बात हो गई है। दिल्ली हो या मुंबई,चेन्नई हो या कोलकाता,हर छोट-बड़े शहरों में पैदल चलना मुश्किल होता जा रहा है। घंटों जाम में आये दिन लोग फंसे रहते हैं। एम्बुलेंस हो या अग्निशमन-दल की गाड़ियाँ,सभी भीड़ की भेंट चढ़ जाती हैं। जाम में फंसे लोगों को वाहन से निकलते प्रदूषित धुँएं कई बीमारियों को जन्म देते हैं। ट्रेन,बस,विमान,हर जगह भीड़ ही भीड़ नजर आती है। मुंबई की लाइफ लाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेन हमेशा प्रवासियों से भरी रहती है। भेड़-बकरी की तरह यात्रा करने पर प्रवासी मजबूर होते हैं। इतना ही नहीं,न जाने कितने लोग इसी भीड़ के चलते अपनी जान भी गंवा देते हैं। आम लोगों का जीवन हमेशा खतरे में ही रहता है। नौकरी करनी है,पेट-पर्दा चलाना है,तो इस तरह जान जोखिम में डालना ही पड़ता है। घर में वीबी-बच्चे आस लगाए रहते हैं कि रोजी-रोटी पर गए लोग सुकून से घर लौट आएँगे,ऐसी चिंता उन्हें रोज सताती है। सरकार को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और हम दो,हमारे दो की पॉलिसी अब लानी ही चाहिए।
138 करोड़ आबादी वाले इस देश में आबादी के मुताबिक हॉस्पिटल की बेहद कमी है। कोरोना महामारी में बहुत से लोगों की जान चली गई और  डॉक्टर्स,नर्स,स्वास्थ्य उपकरणों की भारी कमी भी महसूस की गई। करोड़ों केस न्यायालयों में लंबित हैं। दिनोंदिन संसाधनों की भारी कमी देखी जा रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण की कमर टूटती ही जा रही है। नदियाँ सूखती जा रही हैं। बढ़ती आबादी के चलते पीने लायक पानी नहीं रहा। दूषित पानी पीने के लिए लोग बेबस हैं।
अगर सरकार  टू चाइल्ड पॉलिसी नहीं लाती है,तो हमारा देश 2027 तक पड़ोसी देश चीन को पीछे छोड़ देगा,तब भोजन,पानी,आवास,चिकित्सा, शिक्षा की भारी किल्लतों से जूझना पड़ेगा। इस तरह की बढ़ती जनसंख्या को लेकर गरीबी, भुखमरी,कुपोषण आदि से देश को जूझना होगा।
देश में युवाओं की एक अच्छी-खासी संख्या होने के बावजूद बेरोजगारों की एक लंबी फ़ौज खड़ी है।
इतनी अच्छी ऊर्जा होने के बावजूद भी हम सही तरीके से उनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। अगर ये हमारे युवक कुशल रोजगार युक्त होते,तो देश तरक्की के सातवें आसमान पर होता। इस तरह की तरक्की पाने के लिए हमें प्रजनन दरों में कमी लानी होगी। जनसंख्या के मामले में उत्तरप्रदेश,बिहार,
मध्यप्रदेश,हरियाणा,झारखण्ड,छत्तीसगढ़ जैसे राज्य चुनौती बने हैं। नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकारों को बुनियादी ढांचों को समायोजित करना होगा। संभावित तरीकों से संसाधनों को बढ़ाना होगा और  अधिक से अधिक नागरिकों की सुख-सुविधा के लिए ज्यादा खर्च करना होगा। भारी भरकम आबादी तो है हमारे पास लेकिन देश को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। देश की अर्थ व्यवस्था में उनकी जो महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए,नहीं हो पा रही है। आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता अत्यधिक जनसंख्या के नकारात्मक परिणामों के रूप में सामने देखने को मिल रहा है।             
महिला सशक्तिकरण और उनकी शिक्षा पर भरपूर ध्यान देना होगा। एक शिक्षित महिला बढ़ती आबादी के दुष्परिणाम के बारे में अशिक्षित महिला की तुलना में ज्यादा समझती है और राष्ट्र के कदम से अपना कदम मिलाकर चलती है। सुदूर गांवों की कुछ पढ़ी या न पढ़ी महिलायें बढ़ती अनियंत्रित आबादी से उतनी चिंतित नजर नहीं आतीं। इस तरह शिक्षा प्रजनन और परिवार नियोजन के अंतर को स्पष्ट करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सबका साथ,सबका विकास तभी संभव है जब लोग अंदर से टू चाइल्ड पॉलिसी को समझेंगे और अपनाएंगे। लौंगिक असामानता और लड़कियों के प्रति भेदभाव की भावना को भी दूर करना होगा। परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करना होगा,वहीं दूसरी तरफ उससे होने वाले लाभ को भी गिनाना होगा। जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को न केवल राष्ट्रीय दृष्टिकोण से बल्कि राज्य के चश्में से भी देखना होगा क्योंकि कुछ राज्यों में शिक्षा की कमी है,तो कुछ राज्यों में आबादी अत्यधिक है। जनसंख्या नीति,आम नागरिकों सहित देश के नीति-निर्माताओं तथा नेताओं को मिलकर बनाना चाहिए ताकि सभी के तालमेल के साथ हरेक की भावना का कद्र हो।
भारत एक विकासशील देश है। इसे अभी बहुत तरक्की करनी है। विश्व की उथल-पुथल को यही देश अपनी वसुधैव कुटुंबकम की नीति की  बदौलत अमन तथा भाईचारे को स्थापित कर सकता है,इस कोरोना काल में पूरी दुनिया इसके  मानवीय कदम को उठाते बिलकुल करीब से देखी है जो सदियों से इसकी पहचान है। दोस्त क्या, दुश्मन भी हमारे कायल हैं। धन्य है यह देश और धन्य हैं यहाँ के लोग! रोम-रोम में लोगों के अंदर त्याग और अपनत्व की गंगा अविरल प्रवाहित होती रहती है।
अब भारत सरकार को इस सत्र में बढ़ती आबादी को लेकर ऐसा कठोर नियम लाना चाहिए कि दो से अधिक बच्चे,लोग पैदा न कर सकें। अगर बने क़ानून का कोई उल्लंघन करे है,तो उससे सारी सरकारी सहूलियतें छीनी जा सकें। तुष्टिकरण की नीति के चलते देश अब तक बहुत नुकसान उठा चुका है। सन 1975-76 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी  नशबंदी के जरिये आबादी नियंत्रित करने संबंधी कठोर कदम उठाई थीं लेकिन सही तरीके से उसे व्यवहार में न लाने की स्थिति में वह योजना असफल हो गई फिर बीच में किसी और सरकार ने बढ़ती आबादी पर कोई क़ानून नहीं लाने की हिम्मत जुटा पाई। वर्तमान सरकार 370 धारा, राममंदिर,तलाक सहित कई राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में सफलता हासिल की है,इससे देश को  बड़ी उम्मीद जगी है।
भारी आबादी वाले इस देश को नये-नये आविष्कार  तथा अंतरराष्ट्रीय खेलों में गोल्ड जीतने जैसे काम भी करना चाहिए। इस पर हमारी वैज्ञानिक सोच क्यों नहीं बनती? बच्चा पैदा करना तो आसान है, देश के भविष्य के बारे में लोग कम क्यों सोचते हैं? आबादी बढ़ाने मात्र से ख़िताब तो मिलेगा नहीं। गांव-गिरावं में अब पुस्तैनी फसली जमीन तथा आबादी की जमीन इतनी कम पड़ती जा रही है कि रोज लाठी ही उठी रहती है। शादी-विवाह पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। घर में हिस्से के खेत कम पड़ते जा रहे हैं। नौकरी-पानी की हालत बद से बदतर होती जा रही है। खाने के लाले पड़े हैं। रोजी-रोटी के अभाव में कुछ आज के युवक छिनैती,डकैती,लूटपाट,हत्या जैसे जघन्य अपराध में भी संलिप्त होते जा रहे हैं। जब तक भारत सरकार अनियंत्रित आबादी के ऊपर कठोर क़ानून नहीं लाएगी,ये सब चलता रहेगा।
उत्तरप्रदेश सरकार टू चाइल्ड पॉलिसी पर अपना ड्राफ्ट तैयार भी कर चुकी है जो स्वागत योग्य कदम है। राजनीतिक चश्में से इसे देखना बिलकुल गलत होगा। इसके पीछे की सच्चाई यह है कि चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अपने देश भारत के बाद, उत्तरप्रदेश राज्य आबादी को लेकर,कल्पना करिये कोई देश होता,तो विश्व का ये तीसरा देश होता। भारी-भरकम आबादी उत्तरप्रदेश के विकास की सारी योजनाओं पर पानी फेर रही है। सारी योजनाएँ धरी की धरी रह जा रही हैं। भेड़ -बकरी की तरह जीना भी कोई जीना है! उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आबादी नियंत्रण पर जो क़ानून हम दो,हमारे दो ला रहे हैं,यह समय की माँग है। अगर कोई भी इसका विरोध करे है,तो मेरे ख्याल से सही नहीं है। 2030 के बाद इस क़ानून पर फिर से समीक्षा होगी, तो इसमें डरने की क्या बात है? इसी तर्ज पर और राज्य टू चाइल्ड पॉलिसी लाने पर विचार करेंगे।
लोकसभा चुनाव,विधान सभा चुनाव,
महानगरपालिका चुनाव आदि चुनाव
 में इस तरह दो से अधिक संतान वाले प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से रोका जाए और दो से अधिक संतान वाले नागरिकों को भी सभी सरकारी सुविधाओं से दूर रखा जाय तब जाकर आबादी नियंत्रण में आएगी। विकास की नई सुबह तब देश को महाशक्ति बनाने में अलग ऊर्जा पैदा करेगी। एशिया महाद्वीप में भारत भ्रष्टाचार के मामले में आज प्रथम पायदान पर है, इससे भी निजात मिलेगी। बढ़ती आबादी भी भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार है। सिर्फ चिल्लाने से आबादी कम होने वाली नहीं है। इसके लिए क़ानून की सख्त जरुरत है। देश में आत्मनिर्भरता के साथ खुशहाली लानी है,तो छोटे परिवार की संकल्पना करनी ही होगी। आज जापान सहित दुनिया के कम आबादी वाले देश कहाँ से कहाँ पहुँच गये। भारत सरकार को भी अब उसी नक्शे कदम पर चलकर देश की भावनाओं का आदर करना चाहिए।

लेखक :रामकेश एम.यादव
(कवि, साहित्यकार ),कुर्ला (पश्चिम )
मुंबई :400072

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