नया सबेरा नेटवर्क
47 वर्ष पूर्व के एक गाने की गूंज फिर सुनाई।
फिल्म रोटी कपड़ा और मकान की याद आई।।
जीवन की वह कहानी आज फिर दोहराई।
तू फ़िर क्यों आई? तुझे क्यों मौत न आई।।
हाय!! महंगाई!! महंगाई!! महंगाई!!
एक हमें कोरोना से लड़ाई मार गई।
दूसरी लॉकडाउन में आमदनी मार गई।।
तीसरी खर्चे की लड़ाई मार गई।
चौथी पारिवारिक सदस्यों की जुदाई मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
पहली लहर छूट्टी तो दूसरी मार गई।
दूसरी छूट्टी तो डेल्टा प्लस की भयानकता मार गई।।
डेल्टा प्लस के साथ तीसरी लहर की डराई मार गई।
जनता जो चीखी चिल्लाई मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
गरीब को तो बच्चे की डिजिटल पढ़ाई मार गई।
गरीबों को तो रोटी की कमाई मार गई।।
घर बैठे बिजली पानी बिल की पटाई मार गई।
नौकरी छूट्टी तो बेरोजगारी मार गई।।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।
महंगाई मार गई महंगाई मार गई।।
-लेखक- कर विशेषज्ञ, साहित्यकार, कानूनी लेखक, चिंतक, कवि, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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