नया सबेरा नेटवर्क
वजीर किसके पास होगा इसका फैसला तीन जुलाई को
प्रदेश नेतृत्व के निर्देश का भाजपा के दिग्गजों पर कोई असर नहीं
हिम्मत बहादुर सिंह
जौनपुर। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर जिला पंचायत सदस्यों को ताश के पत्ते की तरह फेंटा जा रहा है। वजीर किसके पास होगा यह कहना जल्दबाजी होगा लेकिन इस पद को हथियाने के लिए रस्साकशी चरम सीमा पर पहुंच गई है। प्रदेश का यह पहला जिला होगा जहां पर प्रदेश नेतृत्व के निर्देश का भाजपा के नेताओं पर कोई असर नहीं दिख रहा है। यह बात इसलिए चर्चा का विषय बनी हुई है कि भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट अपना दल एस को खाते में दे दिया लेकिन भाजपा के टिकट पर सदस्य बनीं श्रीमती नीलम सिंह पार्टी से बगावत करके जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर कब्जा करने के लिए नामाँकन कर दिया। 29 जून को नाम वापसी के दिन सिर्फ एक पर्चा सुनीता वर्मा का वापस हुआ बाकी किसी प्रत्याशी का पर्चा वापस नहीं हुआ और अब मैदान में चार प्रत्याशी अपने भाग्य की जोर आजमाइश करने में लगीं हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा का पूरा अमला निर्दल प्रत्याशी नीलम सिंह को जिताने में लगा है। इस बात का खुलासा अपना दल एस के राष्ट्रीय महासचिव पप्पू माली का कहना है कि प्रदेश नेतृत्व भले ही जिला पंचायत अध्यक्ष का सीट अपना दल एस के खाते में दिया है लेकिन भाजपा का कोई नेता अपना दल के प्रत्याशी की मदद में दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है। हलांकि जिला पंचायत अध्यक्ष पद हथियाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अख्तियार किये जा रहे हैं। सदस्यों को तरह-तरह के प्रलोभन दिये जा रहे हैं लेकिन सदस्य भी काफी होशियार हैं और धनवर्षा के आगे पार्टी की प्रतिष्ठा भी बौनी साबित हो रही है। चर्चा यह है कि लिफाफा जिसका जितना मोटा होगा उतने ही संख्या में प्रत्याशी के पास जिला पंचायत सदस्यों का समर्थन मिल सकता है। लेकिन दूसरी तरफ यह भी चर्चा है कि हर प्रत्याशी चालीस से पैतालींस सदस्यों का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में वजीर किसके पास होगा यह कहा नहीं जा सकता। जानकारों का यह भी मानना है कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद के परिणाम चौकाने वाले आ सकते हैं। सपा अपने सदस्यों को पार्टी का निष्ठावान होने की याद दिला रहा है तो अपना दल गठबंधन की दोहाई दे रहा है। निर्दल प्रत्याशी पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह और भाजपा से बगावत कर मैदान में उतरीं नीलम सिंह भी सदस्यों का पूरा समर्थन मिलने का दावा कर रही हैं। ज्ञातव्य हो कि भाजपा के दिग्गज नेताओं पर गठबंधन का कोई असर नहीं दिख रहा है। अंदर-अंदर जो रणनीति बन बिगड़ रही है उसपर भी अन्य प्रत्याशियों के समर्थकों की पैनी निगाहें लगी हुई हैं। प्रशासन पूरी तरह से मूकदर्शक मुद्रा में है। किसी को जिताने हराने के पक्ष में दूर-दूर तक नहीं है। निष्पक्षता के साथ मतदान कराने के लिए पूरी तरह से तैयारी की जा रही है। अब इस सियासत में वही वजीर अपने पास रख पायेगा जिसका सदस्यों पर पूरी तरह से भरोसा होगा और उनकी बातों पर खरा उतरेंगें। वैसे तो सदस्य सबको समर्थन देने की बात कह कर अपना गर्दन बचा ले रहे हैं, लेकिन असली भरोसे की अग्नि परीक्षा 3 जुलाई को होगी और शाम को मतगणना के बाद जीत का सेहरा किसके सिर पर बंधेगा यह अभी भविष्य की गर्त में है।
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